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Home धर्म

वैदिक सभ्यता, साहित्य, दर्शन और धर्म से जुड़ी जानकारी

by gnstaff
February 25, 2020
in धर्म, शिक्षा
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सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) के पश्चात भारत में जिस नवीन सभ्यता का विकास हुआ उसे ही आर्य (Aryan) अथवा वैदिक सभ्यता (Vedic Civilization) के नाम से जाना जाता है। इस काल की जानकारी हमे मुख्यत: वेदों से प्राप्त होती है, जिसमे ऋग्वेद सर्वप्राचीन होने के कारण सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वैदिक काल का विभाजन दो भागों में किया जाता है – ऋग्वैदिक काल (1500 से 1000 ई० पू०) और उत्तर वैदिककाल (1000 से 600 ई० पू०)! वैदिक सभ्यता आर्यों द्वारा निर्मित वैदिक सभ्यता थी! आर्यों द्वारा विकसित सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी! आर्यों की भाषा संस्कृत थी!

 

इस काल की तिथि निर्धारण जितनी विवादास्पद रही है उतनी ही इस काल के लोगों के बारे में सटीक जानकारी। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि इस समय तक केवल इसी ग्रंथ (ऋग्वेद) की रचना हुई थी। मैक्स मूलर के अनुसार आर्य का मूल निवास मध्य एशिया है। मैक्स मूलर ने जब अटकलबाजी करते हुए इसे 1200 ईसा पूर्व से आरंभ होता बताया था तब उसके समकालीन विद्वान डब्ल्यू. डी. ह्विटनी ने इसकी आलोचना की थी। उसके बाद मैक्स मूलर ने स्वीकार किया था कि “पृथ्वी पर कोई ऐसी शक्ति नहीं है जो निश्चित रूप से बता सके कि वैदिक मंत्रों की रचना 1000 ईसा पूर्व में, 1500 ई० पू० में, 2000 ई० पू० में या 3000 ई० पू० में हुई!

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ऐसा माना जाता है कि आर्यों का एक समूह भारत के अतिरिक्त ईरान और यूरोप की तरफ़ भी गया था। ईरानी भाषा के प्राचीनतम ग्रंथ अवेस्ता की सूक्तियां ऋग्वेद से मिलती जुलती हैं। अगर इस भाषिक समरूपता को देखें तो ऋग्वेद का रचनाकाल 1000 ईसा पूर्व आता है। लेकिन बोगाज-कोई में पाए गए 1400 ईसा पूर्व के अभिलेख में हिंदू देवताओं इंद्र, मित्रावरुण, नासत्य इत्यादि को देखते हुए इसका काल और पीछे माना जा सकता है। बाल गंगाधर तिलक ने ज्योतिषीय गणना करके इसका काल 6000 ई.पू. माना था। हरमौन जैकोबी ने जहाँ इसे 4500 ईसापूर्व से 2500 ईसापूर्व के बीच आंका था वहीं सुप्रसिद्ध संस्कृत विद्वान विंटरनित्ज़ ने इसे 3000 ईसापूर्व का बताया था।

और पढ़ें : भारत के प्रमुख राजवंश एवं उसके क्षेत्र

 

आर्यों के प्रशासनिक इकाई पांच भागों में बंटा हुआ था – कुल, ग्राम, विश, जन, राष्ट्र! ग्राम के मुखिया ग्रामिणी एवं विश का प्रधान विशपति कहलाते थे! जन के सेवक को राजन कहा जाता था! राज्याधिकारियों में पुरोहित एवं सेनानी प्रमुख थे! सूत, रथकार तथा कम्मादी नामक अधिकारी रत्नी कहे जाते थे! इनकी संख्या राजा सहित करीब 12 हुआ करती थी! पुरप – दुर्गपति, स्पश – जनता की गतिविधियों को देखने वाले गुप्तचर होते थे! वाजपति – गोचर भूमि का अधिकारी होता था! उग्र – अपराधियों को पकड़ने का कार्य करता था! सभा एवं समिति राजा को सलाह देने वाली संस्था थी! सभा श्रेष्ठ एवं संभ्रांत लोगों की संस्था थी जबकि समिति सामान्य जनता का प्रतिनिधित्व करती थी! इसके अध्यक्ष को ईशान कहा जाता था!

 

युद्ध में काबिले का नेतृत्व राजा करता था! युद्ध के लीए गविष्टि शब्द का प्रयोग किया जाता था, जिसका अर्थ है गायों की खोज! दसराज्ञ युद्ध का उल्लेख ऋग्वेद के 7वें मंडल में है, यह युद्ध परुषणी (रावी) नदी के तट पर सुदास एवं दस जनों के बिच लड़ा गया जिसमें सुदास विजयी रहा! ऋग्वैदिक समाज चार वर्णों में विभाजित था, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र! यह विभाजन व्यवसाय पर आधारित था! ऋग्वेद के 10वें मंडल के पुरुषसूक्त में चतुर्थवर्णों का उल्लेख मिलता है! इसमें कहा गया है की ब्राह्मण परम पुरुष के मुख से, क्षत्रिय उनकी भुजाओं से, वैश्य उनकी जांघों से एवं शुद्र उनके पैरों से उत्पन्न हुए हैं!

 

आर्यों का समाज पितृप्रधान था! समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार या कुल थी, जिसका मुखिया पिता होता था, जिसे कुलप कहा जाता था! स्त्रियाँ इस काल में अपनी पति के साथ यज्ञ कार्य में भाग लेती थी! बाल विवाह एवं पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था! विधवा विवाह होता था, विधवा अपने पति के छोटे भाई (देवर) से विवाह कर सकती थी! स्त्रियाँ शिक्षा ग्रहण करती थी! ऋग्वेद में लोपामुद्रा, घोषा, सिकता, आपला एवं विश्वास जैसी विदुषी स्त्रियों का वर्णन है! जीवन भर अविवाहित रहनेवाली स्त्रियों को अमाजू कहा जाता था! ऋग्वैदिक काल में प्राकृतिक शक्तियों की ही पूजा की जाती थी, कर्मकांडों की ज्यादा प्रमुखता नहीं थी!

 

आर्यों का मुख्य पेय पदार्थ सोमरस था, यह वनस्पति से बनाया जाता था! आर्य मुख्यतः तीन प्रकार के वस्त्रों का उपयोग करते थे – वास, अधिवास, उष्णीय! अंदर पहनने वाले कपड़े को नीवि कहा जाता था! आर्यों के मनोरंजन के मुख्य साधन थे – संगीत, रथदौड़, घुडदौड़, द्युतक्रीड़ा! आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन एवं कृषि था! गाय को अघ्न्या – न मारे जाने योग्य पशु की श्रेणी में रखा गया था! गाय की हत्या करने वाले या उसे घायल करने वाले के लिए वेदों में मृत्युदंड अथवा देश निकाले की व्यवस्था की गई थी! आर्यों का प्रिय पशु घोड़ा एवं सर्वाधिक प्रिय देवता इंद्र थे! ऐसे माना जाता है की भारतीय धर्मग्रंथ, दर्शन एवं वैदिक साहित्य जिनमें वेद, वेदांग, दर्शन, सूत्र, उपनिषद, महापुराण वगैरह की रचना इसी काल में हुए!

 

आर्यों द्वारा खोजी गई धातु लोहा थी! जिसे श्याम अयस कहा जाता था! ताम्बे को लोहित अयस कहा जाता था! व्यापार हेतु दूर दूर तक जानेवाला व्यक्ति को पणी कहते थे! लेनदेन में वस्तु विनियम की प्रणाली प्रचलित थी! ऋण देकर ब्याज लेने वाला व्यक्ति को वेनकॉट (सूदखोर) कहा जाता था! मनुष्य एवं देवता के बिच मध्यम की भूमिका निभानेवाले देवता के रूप में अग्नि की पूजा की जाती थी! ऋग्वेद में उल्लिखित सभी नदियों में सरस्वती सबसे महत्वपूर्ण तथा पवित्र मानी जाती थी! ऋग्वेद में गंगा का एकबार और यमुना का तीन बार उल्लेख हुआ है! इसमें सिंधु नदी का उल्लेख सर्वाधिक बार हुआ है!

 

उत्तरवैदिक काल में राजा के राज्याभिषेक के समय राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान किया जाता था! उत्तरवैदिक काल में वर्ण व्यवसाय की बजाय जन्म के आधार पर निर्धारित होने लगे थे! उत्तरवैदिक काल में हल को सिरा और हल रेखा को सीता कहा जाता था! उत्तरवैदिक काल में निष्क और शतमान मुद्रा की इकाइयाँ थी, लेकिन इस काल में किसी खास भार, आकृति और मूल्य के सिक्कों के चलन का कोई प्रमाण नहीं मिलता! सांख्य दर्शन भारत के सभी दर्शनों में सबसे प्राचीन है! इसके अनुसार मूल तत्व पच्चीस हैं, जिनमें प्रकृति पहला तत्व है! ‘सत्यमेव जयते’ मुण्डकोपनिषद से लिया गया है! इसी उपनिषद में यज्ञ की तुलना टूटी नाव से की गई है! गायत्री मंत्र सावित्री नामक देवता को संबोधित है, जिसका संबंध ऋग्वेद से है! उत्तरवैदिक काल में कौशाम्बी नगर प्रथम बार पक्की ईटों का प्रयोग किया गया था! महाकाव्य दो हैं – रामायण और महाभारत! महाभारत का पुराना नाम जयसंहिता है! यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है! गोत्र नामक संस्था का जन्म उत्तरवैदिक काल में हुआ!

और पढ़ें : भारत की ऐतिहासिक लड़ाइयाँ, काल एवं सम्बंधित राज्य

 

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Tags: bhartiya vaidik Sahityageneral knowledgeवैदिक सभ्यतासामान्य ज्ञान
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