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Home शिक्षा

सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी एवं इसका विस्तार

by gnstaff
February 29, 2020
in शिक्षा
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रेडियो कार्बन जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2400 ई० पू० से 1700 ई० पू० मानी गयी है! सिंधु सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की! सिंधु सभ्यता को प्राकऐतिहासिक अथवा कांस्य युग में रखा जा सकता है! सिंधु सभ्यता के सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल दाश्क नदी के किनारे स्थित सूतकागेंडोर (बलूचिस्तान), पूर्वी पुरास्थल हिंडन नदी के किनारे गोदावरी नदी के तट पर आलमगीरपुर (जिला मेरठ, उत्तर प्रदेश), उत्तरी पुरास्थल चिनाब नदी के तट पर अखनूर के निकट मांदा (जम्मू कश्मीर) तथा दक्षिणी पुरास्थल दाइमाबाद (जिला अहमदनगर, महारष्ट्र) माना जाता है!

 

सिन्धु घाटी सभ्यता का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक था। यह इन्दुस या इन्डस नदी (indus river) के किनारे बसने वाली सभ्यता थी और अपनी भौगौलिक उच्चारण की भिन्नताओं की वजहों से इस इन्डस को सिन्धु कहने लगे, आगे चल कर इसी से यहां के रहने वाले लोगो के लिये हिन्दू उच्चारण का जन्म हुआ। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से इस सभ्यता के प्रमाण मिले हैं! अतः विद्वानों ने इसे सिन्धु घाटी की सभ्यता का नाम दिया, क्योंकि यह क्षेत्र सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में आते हैं, पर बाद में रोपड़, लोथल, कालीबंगा, वनमाली, रंगापुर आदि क्षेत्रों में भी इस सभ्यता के अवशेष मिले जो सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र से बाहर थे। अतः कई इतिहासकारों ने इस सभ्यता का प्रमुख केन्द्र हड़प्पा होने के कारण इस सभ्यता को “हड़प्पा सभ्यता” नाम देना अधिक उचित मानते समझा!

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सिंधु सभ्यता या सैंधव सभ्यता नगरीय सभ्यता थी! सैंधव सभ्यता से प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में केवल 6 को ही बड़े नगर की संज्ञा दी गयी है, ये हैं – मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, गणवारीवाला, धौलावीरा, राखीगढ़ी एवं कालीबंगन! स्वतंत्रता प्राप्ति पश्चात हड़प्पा संस्कृति के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गए हैं! लोथल एवं सुतकोतदा सिंधु सभ्यता के बंदरगाह थे! दिसम्बर २०१४ में भिरड़ाणा को सिंधु घाटी सभ्यता का अब तक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर (7000 ई० पू० से अधिक पुराना) माना गया है। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं।

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जुते हुए खेत और नक्काशीदार ईंटों के प्रयोग का साक्ष्य कालीबंगन से प्राप्त हुआ है! मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्नागार संभवतः सैंधव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है! मोहनजोदड़ो से प्राप्त वृहत स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है, जिसके मध्य स्थित स्नानकुंड 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा एवं 2.43 मीटर गहरा है! अग्निकुंड लोथल एवं कालीबंगन से प्राप्त हुआ है! मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक शील पर तीन मुख वाले देवता (पशुपति नाथ) की मूर्ति मिली है! उनके चारो ओर हाथी, गैंडा, चीता एवं भैंसा विराजमान है! मोहनजोदड़ो से नर्तकी की एक कांस्य की मूर्ति मिली है! हड़प्पा की मोहरों पर सबसे अधिक एक श्रृंगी पशु का अंकन मिलता है! मनके बनाने के कारखाने लोथल एवं चुहन्दड़ो में मिले हैं!

 

सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक है! यह लिपि दायीं से बाई ओर लिखी जाती थी! जब अभिलेख एक से अधिक पंक्तियों का होता था तो पहली पंक्ति दायीं से बाईं ओर और दूसरी पंक्ति बाईं से दायीं ओर लिखी जाती थी! सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों ने नगरों तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रिड पद्धति अपनाई! घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ सड़क की ओर न खुलकर पिछवाड़े की ओर खुलते थे! केवल लोथल नगर के घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुलते थे! सिंधु सभ्यता में मुख्य फसल थी गेहूँ और जौ! सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे! रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं, जिनसे धान की खेती होने के प्रमाण मिलता है! चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल से ही प्राप्त हुए हैं!

 

सुरकोतदा, कालीबंगन एवं लोथल से सैंधवकालीन घोड़े के अस्थि पंजर मिले हैं! तौल की इकाई संभवतः 16 के अनुपात में थी! सैंधव सभ्यता के लोग यातायात के लिए दो पहियों एवं चार पहियों वाली बैलगाड़ी या भैंसागाड़ी का उपयोग करते थे! मेसोपोटामिया के अभिलेखों में वर्णित मेलूहा शब्द का प्रयोग सिंधु घाटी सभ्यता के लिए ही किया गया है! संभवतः हड़प्पा संस्कृति का शासन वर्णिक वर्ग के हाथों में था! पिग्गट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वां राजधानी कहा है!

 

सिंधु घाटी के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा करते थे! वृक्ष पूजा एवं शिव पूजा के प्रचलन के साक्ष्य भी सिंधु घाटी सभ्यता से मिलते हैं! स्वस्तिक चिह्न संभवतः हड़प्पा सभ्यता की देन है! इस चिह्न से सूर्योपासना का अनुमान लगाया जाता है! सिंधु घाटी सभ्यता के नगरों में किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं! सिंधु घाटी सभ्यता में मातृदेवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी! पशुओं में कूबड़ वाला सांड इस सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पूजनीय था! स्त्री मृन्मूर्तियाँ (मिटटी की मूर्तियाँ) अधिक मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है की सैंधव समाज मातृसतात्मक था!

 

सैंधव सभ्यता के लोग सूती एवं ऊनि वस्त्रों का उपयोग करते थे! मनोरंजन के लिए मछली पकड़ना, शिकार करना, पशु पक्षियों को आपस में लड़ाना, चौपड़, पासा खेलना आदि साधनों का प्रयोग करते थे! सिंधु घाटी सभ्यता के लोग काले रंग से डिजाइन किए हुए लाल मिटटी के बर्तन बनाते थे! सिंधु घाटी के लोग तलवार से परिचित नहीं थे! कालीबंगन एक मात्र हड़प्पाकालीन स्थल था, जिसका निचला शहर भी किले से घिरा हुआ था! यहाँ से पूर्व हड़प्पा स्तरों के खेत जोते जाने के और अग्निपूजा की प्रथा के प्रमाण मिले हैं! मोहनजोदड़ो में शवों को जलाने की प्रथा विद्यमान थी! लोथल एवं कालीबंगा से युग्म समाधियाँ मिली है! आग में पकी हुई मिटटी को टेराकोटा कहा जाता था! इस सभ्यता के बाद जो सभ्यता विकास में आई वो सभ्यता थी वैदिक सभ्यता जिसमें भारतीय धर्मग्रंथ एवं दर्शन का विकास हुआ!

 

सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल, नदी एवं उत्खननकर्ता :

 स्थल नदी  उत्खननकर्ता वर्ष स्थिति 
 हड़प्पा रावी दयाराम साहनी एवं माधोस्वरूप वत्स 1921 पाकिस्तान का मोंटगोमरी
 मोहनजोदड़ो सिंधु राखालदास बनर्जी 1922 पाकिस्तान के सिंध प्रांत का लरकाना
 चन्हुदड़ो सिंधु गोपाल मजुमदार 1931 पाकिस्तान के सिंध प्रांत
 कालीबंगन घग्घर बी बी लाल एवं बी के थापर 1953 राजस्थान का हनुमानगढ़
 कोटदिजी सिंधु फजल अहमद 1953 सिंध प्रांत का खैरपुर
 रंगपुर मादर रंगनाथ राव 1953 – 1954 गुजरात का काठियावाड़
 रोपड़ सतलज यज्ञदत्त शर्मा 1953 – 1956 पंजाब का रोपड़
 लोथल भोगवा रंगनाथ राव 1955 – 1962 गुजरात का अहमदाबाद
 आलमगीरपुर हिंडन यज्ञदत्त शर्मा 1958 उत्तर प्रदेश का मेरठ
 सुतकांगेडोर दाश्क ऑरेज स्टाइल, जॉर्ज डेल्स 1927 – 1962 पाकिस्तान के मकरान
 बनमाली रंगोई रविंद्र सिंह बिष्ट 1974 हरियाणा का हिसार
 धौलावीरा – रविंद्र सिंह बिष्ट 1990 – 1991 गुजरात का कच्छ

और पढ़ें : भारत की आजादी के महान शहीद

 

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