जिनका रूप सदैव बना रहता है और उनमें परिवर्तन नहीं होता! एक ही रूप बने रहने के कारण इन्हें अव्यय ( Avyay ) कहते हैं! ‘अव्यय’ शब्द का अर्थ है – जिनका व्यय न हो अर्थात् जिनमें विकार न आए! इन्हें अविकारी पद भी कहते हैं! अव्यय वे पद हैं जिनमें लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि के कारण कोई विकार या परिवर्तन नहीं होता! संज्ञा, सर्वनाम विशेषण और क्रिया पदों को विकारी पद ( Vikari Pad ) कहते हैं, क्योंकि इनके पदों में लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि के अनुसार परिवर्तित होता है!
अव्यय ( Avyay ) के भेद –
१. क्रिया-विशेषण २. संबंधबोधक ३. समुच्चयबोधक ४. विस्मयादिबोधक ५. निपात
१. क्रिया-विशेषण ( Kriya Visheshan ) – जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, उन्हें क्रिया-विशेषण कहते हैं! क्रिया की विशेषता प्रायः चार प्रकार से बताई जाती है, अतः क्रिया विशेषण के चार भेद होते हैं – (i) रीतिवाचक क्रिया विशेषण (ii) कालवाचक क्रिया विशेषण (iii) स्थानवाचक क्रिया विशेषण (iv) परिमाणवाचक क्रिया विशेषण
(i) रीतिवाचक क्रिया विशेषण – जिन क्रिया विशेषण शब्दों से क्रिया के ढंग या रीती की विशेषता का बोध होता है, उन्हें रीतिवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं, जैसे – प्रेशर कुकर अचानक फट गया! यदि वाक्य की मुख्य क्रिया के साथ ‘कैसे’ प्रश्न लगा दिया जाए तो उत्तर रीतिवाचक क्रिया विशेषण आएगा! रीतिवाचक क्रिया वाचक के प्रकार –
(क) विधिबोधक – ध्यानपूर्वक, सहसा, हाथोंहाथ, सुखपूर्वक, परिश्रमपूर्वक, धीरे धीरे, तेज आदि!
(ख) निश्चय्बोधक – अवश्य, निसंदेह, जरुर, सचमुच, बेशक आदि!
(ग) अनिश्चयबोधक – शायद, संभवतः, प्रायः, बहुधा, कदाचित, अक्सर आदि!
(घ) हेतुबोधक – क्यों, किसलिए, अतएव, अतः, क्योंकि आदि!
(च) निषेधबोधक – न, नहीं, मत, कभी नहीं आदि!
(छ) प्रश्नवाचक – क्यों, कैसे
(ज) स्वीकृतिबोधक – हाँ, जी, ठीक, सच, बिलकुल
(झ) आकस्मिकताबोधक – सहसा, अचानक, एकाएक, अकस्मात!
(ट) आवृत्तिबोधक – सरासर, फटाफट, धड़ाधड़, चुपचाप
(ii) कालवाचक क्रिया विशेषण – जिन क्रिया विशेषण शब्दों से क्रिया के समय की विशेषता का बोध होता है, उन्हें कालवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं! यदि क्रिया के साथ ‘कब’ लगाकर प्रश्न किया जाए तो उत्तर कालवाचक क्रिया विशेषण होगा! कालवाचक क्रिया विशेषण के तीन प्रकार होता हैं –
(क) काल-बिंदु वाचक – आज, कल, अब, जब, अभी, प्रातः, सायं, पश्चात आदि!
(ग) अवधि वाचक – हमेशा, लगातार, सदैव, दिनभर, नित्य, निरंतर, लगातार, आजकल आदि!
(घ) बारंबारता वाचक – हरबार, प्रतिदिन, प्रतिवर्ष, बहुधा, आदि!
(iii) स्थानवाचक क्रिया विशेषण – जिन क्रिया विशेषण शब्दों से क्रिया के स्थान की विशेषता का बोध होता है, उन्हें स्थानवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं! क्रिया के साथ ‘कहाँ’ प्रश्न करें तो उत्तर स्थानवाचक क्रिया विशेषण मिलेगा! इसके दो प्रकार होते हैं –
(क) स्थितिबोधक – आगे, पीछे, ऊपर, निचे, भीतर, बाहर, सर्वत्र, अंदर, बाहर, आमने, सामने, दूर, यहाँ, आदि!
(ख) दिशाबोधक – सामने, इधर, उधर, चारो ओर, निचे आदि!
(iv) परिमाणवाचक क्रिया विशेषण – जिन क्रिया विशेषणों से क्रिया की मात्रा या नाप तौल आदि की विशेषता का बोध होता है, उन्हें परिमाणवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं! क्रिया के साथ कितना/कितनी लगाकर प्रश्न करो तो उत्तर परिमाणवाचक क्रिया विशेषण आएगा! जैसे – थोड़ा, खूब, उतना-जितना, बराबर, कम, अधिक आदि!
क्रिया विशेषणों की रचना –
कुछ शब्द मूलतः क्रिया विशेषण होते हैं और कुछ क्रिया विशेषणों की रचना की जाती है! किसी मूल शब्द के साथ ‘प्रत्यय लगाकर तथा समास द्वारा क्रिया विशेषण बनाए जाते हैं! इस आधार पर क्रिया विशेषण दो प्रकार के होते हैं! (i) मूल क्रिया विशेषण (ii) यौगिक क्रिया विशेषण
(i) मूल क्रिया विशेषण – जो किसी अन्य शब्द अथवा प्रत्यय के योग के बिना ही प्रयोग में लाए जाते हैं, वे मूल क्रिया विशेषण कहलाते हैं! जैसे – यहाँ, वहाँ, कम, अधिक, अचानक आदि!
(ii) यौगिक क्रिया विशेषण – यौगिक क्रिया विशेषण समास द्वारा बनते हैं या शब्दों के साथ प्रत्यय लगाकर बनते हैं! जैसे – यथाशक्ति, प्रेमपूर्वक, रातों-रात, यथोचित, चुपके-चुपके आदि! यौगिक क्रिया विशेषण संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विलोम शब्दों और शब्दों की आवृति से बनते हैं!
न, नहीं और मत शब्दों का प्रयोग भी क्रिया विशेषण के रूप में किया जाता है! क्रिया विशेषण की विशेषता बताने वाले शब्द भी क्रिया विशेषण कहलाते हैं, इन्हें ‘क्रिया-प्रविशेषण’ भी कहा जाता है! जैसे – जरा अधिक ऊँचा बोलो!
विशेषण ( Visheshan ) और क्रिया विशेषण ( Kriya Visheshan ) में अंतर – कई विशेषण शब्द क्रिया विशेषण के रूप में भी प्रयोग में लाए जाते हैं! विशेषण शब्द जब क्रिया से पहले आएँगे वे भी तभी क्रिया विशेषण होंगे! यदि वे संज्ञा से पहले आएँगे तो विशेषण ही कहलाएँगे! हिंदी में कालवाचक, रीतिवाचक तथा स्थानवाचक क्रिया विशेषणों का प्रयोग एक ही वाक्य में संभव है, जैसे – वे शाम को धीरे धीरे ऊपर पहुंचेंगे!
२. संबंधबोधक ( Sambandhbodhak ) – संज्ञा और सर्वनाम के बाद आकार उनका संबंध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ प्रकट करने वाले अव्यय शब्दों को संबंधबोधक कहते हैं! इनके पहले किसी न किसी परसर्ग की अपेक्षा रहती है; जैसे – के, से, की आदि!
संबंधबोधक ( Sambandh Bodhak ) के भेद – संबंधबोधक के भेड़ों के तीन आधार हैं – (i) प्रयोग (ii) अर्थ (ii) उत्पत्ति
(i) प्रयोग के आधार पर संबंधबोधक के भेद –
(क) संबद्ध संबंधबोधक – संज्ञा की विभक्तियों के पश्चात आने वाले संबंधबोधक शब्दों को संबद्ध संबंधबोधक कहते हैं; जैसे – कुरुक्षेत्र से दूर जालंधर है!
(ख) असंबद्ध संबंधबोधक – संज्ञा के बदले हुए रूपों के पश्चात आने वाले संबंधबोधक शब्दों को असंबद्ध संबंधबोधक कहते हैं; जैसे – भाई मुठ्ठी भर चावल को तरसते रहे!
(ii) अर्थ के आधार पर संबंधबोधक के भेद –
(क) समतावाचक : सा, अनुसार, तरह, समान, जैसे, भांति, नाई, बराबर आदि!
(ख) पृथकतावाचक : अलग, परे, दूर, हटकर आदि!
(ग) विनिमयवाचक : बदले, एवज, स्थान, जगह आदि!
(घ) संग्रहवाचक : मात्र, तक, पर्यंत, भर आदि!
(ड़) स्थानवाचक : यहाँ, निचे, पीछे, वहाँ, दूर, पास, ऊपर, आगे आदि!
(च) साधनवाचक : माध्यम, द्वारा, मार्फ़त, सहारे, जरिए आदि!
(छ) विरोधवाचक : विरुद्ध, खिलाफ, विपरीत, प्रतिकूल, उल्टे आदि!
(ज) संगवाचक : साथ, समेत, संग, सहित आदि!
(झ) तुलनावाचक : आगे, मुकाबले, सामने, अपेक्षा, बनिस्बत आदि!
(ट) व्यक्तिरेकवाचक : रहित, अतिरिक्त, सिवा, बिना, अलावा, बगैर, सिवाय आदि!
(ठ) कालवाचक : बाद, पूर्व, उपरांत, पहले, अनंतर, पश्चात, पीछे आदि!
(ड) हेतुवाचक : चलते, वास्ते, कारण, खातिर, लिए, हित आदि!
(iii) उत्पत्ति के आधार पर संबंधबोधक के भेद :
(क) मूल संबंधबोधक : हिंदी और संस्कृत भाषाओँ के संबंधबोधक शब्द जो मूल रूप से ही संबंधबोधक है, उन्हें मूल संबंधबोधक कहते हैं! जैसे – बिना, पूर्वक, पर्यंत, सिवाय आदि!
(ख) यौगिक संबंधबोधक : संज्ञा, विशेषण, क्रिया और क्रिया विशेषण शब्दों से बनने वाले संबंधबोधक यौगिक संबंधबोधक कहलाते हैं!
क्रिया विशेषण और संबंधबोधक में अंतर : यदि अव्यय शब्द क्रिया की विशेषता बताने के साथ अन्य किसी संज्ञा या सर्वनाम के साथ सम्बंधित हो तो संबंधबोधक कहलाता है, अन्यथा क्रिया विशेषण कहलाता है!
समुच्याबोधक या योजक ( Samuchyabodhak : Conjunction) : दो शब्दों, वाक्यांशों और वाक्यों को जोड़ने वाले शब्द समुच्चयबोधक कहलाते हैं! जैसे – और, तथा, या, अन्यथा, क्योंकि और परंतु आदि!
समुच्चयबोधक के भेद –
(i) समानाधिकरण समुच्चयबोधक – ऐसे समुच्चयबोधक शब्द जिनसे समान पदों, वाक्यांशों, पदबंधों, उपवाक्यों और वाक्यों को जोड़ा जाता है! जैसे – अध्यापक पढ़ा रहा था और विद्यार्थी पढ़ रहे थे! समानाधिकरण समुच्चयबोधक के भेद – (क) संयोजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक (ख) विभाजक समानाधिकरण समुच्चयबोधक (ग) परिणामदर्शक समानाधिकार समुच्चयबोधक (घ) विरोधदर्शक समानाधिकरण समुच्चयबोधक
(ii) व्यधिकरण समुच्चयबोधक – ऐसे समुच्चयबोधक जो वाक्य में एक या अधिक आश्रित उपवाक्यों को जोड़ते हैं, व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहलाते हैं! जैसे – मैं घर जा रहा हूँ, ताकि आराम कर सकूँ! व्यधिकरण समुच्चयबोधक के भेद – (क) करणवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक (ख) स्वरुपवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक (ग) उद्देश्यवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक (घ) संकेतवाचक व्यधिकरण समुच्चयबोधक
विस्मयादिबोधक ( Vismayadibodhak : Interjection) – जो अव्यय शब्द विस्मय, प्रशंसा, प्रसन्नता, शोक और घृणा आदि भावों को प्रकट करते हैं, उन्हें विस्मयादिबोधक कहते हैं! विस्मयादिबोधक शब्द वाक्य के आरंभ में आते हैं, इनके आगे विस्मयादिबोधक चिह्न ‘!’ लगाया जाता है, ये शब्द स्वतंत्र होते हैं! जैसे – वाह!, शाबाश! आदि! कई बार विकारी शब्दों का प्रयोग विस्मयादिबोधक के रूप में किया जाता है, जैसे – बाप रे बाप!
निपात ( Nipat ) – जो अव्यय वाक्य में किसी शब्द के बाद लगकर उसे विशेष बल प्रदान करते हैं, उन्हें निपात कहते हैं! इन्हें आधारमूलक शब्द भी कहा जाता है! जैसे – राम ही कल जाएगा!
निपात ( Nipaat ) के भेद – (i) तुलनात्मक निपात (सा), (ii) प्रश्नवाचक निपात (क्या), (iii) सम्मानवाचक निपात (जी), (iv) विस्मयवाचक निपात (क्या), (v) स्वीकारवाचक निपात (हाँ, जी हाँ, जी), (vi) निषेधवाचक निपात (मत), (vii) अवधारणावाचक निपात (लगभग, ठीक, करीब), (viii) नकारात्मकवाचक निपात (नहीं), (ix) बलवाचक निपात (तो, तक, भी, पर, मात्र)
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