भाषा क्या है? (What is Language) :
भाषा (Language) मानव मुख से निकली वे सार्थक ध्वनियाँ हैं जो दूसरों तक अपनी बात पहुँचाने का काम करती है! मानव मुख से निकलने वाली ये ध्वनियाँ अर्थपूर्ण शब्दों (Words) का निर्माण करती है, जिससे वाक्यों (Sentences) की रचना होती है, जिनके माध्यम से हम अपने भावों और विचारों को प्रकट करते हैं!
मानव मुख से निकले ये ध्वनि संकेत एक व्यवस्था में बंधे होते हैं! इस व्यवस्था बाध्यता के कारण ही मानव भाषा पशु भाषा से भिन्न हो जाती है! प्रत्येक भाषा की अपनी व्यवस्था होती है और प्रत्येक भाषिक व्यवस्था के अपने नियम होते हैं! भाषा शब्द भाष धातु से बना है! इसका अर्थ है बोलना! अतः जिन ध्वनियों को बोलकर मनुष्य अपनी बात कहता है, उसे भाषा कहा जाता है!
भाषा के रूप (Kinds of Language) :
भाषा की अभिव्यक्ति दो रूपों में होती है – मौखिक और लिखित! मौखिक भाषा को उच्चारित भाषा भी कहते हैं क्योंकि मुख द्वारा उच्चारण से बोला जाता है! मौखिक रूप भाषा का मूल रूप है और यह मनुष्य को सहज रूप से प्राप्त होता है! लिखित भाषा को लिखकर प्रकट करना पड़ता है, जिसे सिखने के लिए प्रयत्न करना पड़ता है! भाषा के मौखिक रूप को निश्चित और स्थायी रूप देने के लिए लिखित स्वरुप की आवश्यकता पड़ती है! लिखित रूप ही भाषा एवं साहित्य को सुरक्षित रखता है! और पढ़ें : अक्षर, विभाजन, बलाघात, अनुतान, संगम और वर्ण विच्छेद
भाषा और लिपि (Language and Script) :
भाषा की ध्वनियों को अंकित करने के लिए निश्चित किए गए चिन्हों या वर्णों को लिपि कहते हैं! इन लिपि चिन्हों का ज्ञान ही अक्षर ज्ञान है! लिपि ध्वनियों को लिखकर प्रस्तुत करने का ढंग है! संसार की विभिन्न भाषाओँ को लिखने के लिए अनेक लिपियाँ प्रचलित है! सबसे प्राचीन लिपि ब्राह्मी लिपि है! देवनागरी सहित भारत की अधिकांश लिपियों का विकास ब्राह्मी से ही हुआ है! भारत की अधिकांश लिपियाँ बाईं से दाईं ओर लिखी जाती है! केवल फारसी लिपि दाईं से बाईं ओर लिखी जाती है! वैसे किसी भी भाषा को किसी भी लिपि में लिखा जा सकता है! हिंदी, संस्कृत, मराठी, नेपाली (देवनागरी लिपि), पंजाबी (गुरुमुखी), उर्दू, अरबी, फारसी, सिंधी (फारसी लिपि), अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, पोलिश, स्पेनिश (रोमन लिपि) वगैरह कुछ प्रचलित लिपियाँ हैं!
भाषा परिवार (Family of Language) :
ऐसी भाषाओँ का समूह, जिनका जन्म एक ही मूल भाषा से हुआ हो, भाषा परिवार कहलाता है! लोगों के अलग अलग क्षेत्रों में जाकर बसने के क्रम में नई भाषाएँ बनती चली गई, एक परिवार के कई उप परिवार भी बनते चले गए! विश्व में लगभग 3000 से ज्यादा भाषाएँ हैं, जिन्हें भाषा परिवार में समेटा गया है! ये परिवार हैं – १. भारोपीय २. द्रविड़ ३. चीनी-तिब्बती-बर्मी ४. सेमेटिक ५. हेमेटिक ६. आग्नेय ७. यूराल-अल्टाइक ८. बाँटू ९. अमेरिकी १०. काकेशस ११. सूडानी १२. बुशमैन! भारत में संसार के चार भाषा परिवारों भारोपीय, द्रविड़, तिब्बती-बर्मी और आग्नेय परिवार की अनेक भाषाएँ बोली जाती है१ हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, ग्रीक, जर्मन आदि भाषाएँ भारोपीय परिवार की भाषाएँ हैं!
भारतीय भाषाएँ (Indian Languages) :
भारत की प्रमुख भाषाएँ दो परिवारों में बंटी है- भारोपीय और द्रविड़! भारोपीय परिवार का एक उप परिवार आर्य भाषा परिवार है! हिंदी, बांग्ला, गुजराती, मराठी, पंजाबी आदि उतर भारत की अधिकांश भाषाएँ आर्य भाषा परिवार की भाषाएँ मानी जाती है! भारत में दूसरा प्रमुख भाषा परिवार है द्रविड़ भाषा परिवार, जिसकी प्रमुख भाषाएँ तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम है! हालाँकि द्रविड़ भाषा परिवार में भी संस्कृत के शब्द प्रचुर मात्रा में है, अतः ये भाषाएँ भी भारत की अन्य भाषाओँ से दूर नहीं है!
आर्य भाषा परिवार (Language Family of an Aryan) :
भारोपीय भाषा परिवार अत्यंत विशाल परिवार है! इस भाषा परिवार की एक महत्वपूर्ण शाखा है- आर्य भाषा परिवार! इसके परिवार में हिंदी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, असमिया, बांग्ला, उड़िया, कश्मीरी आदि भाषाएँ शामिल है! इस भाषा परिवार का प्राचीनतम रूप हमें वैदिक संस्कृत में सुरक्षित मिलता है! वैदिक संस्कृत से आधुनिक भारतीय भाषाओँ तक आने से इसे चार चरणों से गुजरना पड़ा- १. वैदिक संस्कृत (१५०० ई० पू० से ८०० ई० पू० तक) २. लौकिक संस्कृत (८०० ई० पू० से ५०० ई० पू० तक) ३. पालि और प्राकृत (५०० ई० पू० से ५०० ई० तक) ४. अपभ्रंश (ई० से १००० ई० तक)! इस विकास क्रम से स्पष्ट है की द्रविड़ परिवार की भाषाओँ को छोड़कर अन्य भारतीय भाषाओँ का विकास अपभ्रंश से ही हुआ है!
हिंदी तथा अन्य आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ (Hindi and other modern indo aryan Languages) :
भारत में अपभ्रंश भाषाओँ का प्रचलन 500 ई० से 1000 ई० के मध्य था, जिनमें शौरसेनी, मागधी, महाराष्ट्री प्रमुख थे! अपभ्रंश पालि प्राकृत से विकसित है और पालि प्राकृत, वैदिक संस्कृत से! आधुनिक भारतीय भाषाओँ के शब्द और व्याकरण लगभग मिलते हैं, इसलिए इन भाषाओँ को परस्पर सीखना और समझना आसान हो जाता है!
भाषा प्रभाव (Effect of Language) : किसी भाषा पर अपने परिवार की अन्य भाषाओं का ही प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि पड़ोसी भाषाओँ का भी प्रभाव पड़ता है! जैसे आर्य परिवार और द्रविड़ परिवार के भाषाओँ पर संस्कृत का प्रभाव! हिंदी पर मुग़ल काल में अरबी और फारसी का प्रभाव! और आज कल हिंदी पर अंग्रेजी भाषा का प्रभाव!
हिंदी भाषा परंपरा (Tradition of Hindi Language) :
जिस रूप में आज हिंदी बोली और समझी जाती है, वह खड़ी बोली का ही विकसित रूप है! खड़ी बोली का प्राचीन रूप दसवीं शताब्दी में मिलता है! उत्तर भारत से दक्षिण में गए इस बोली को दक्खिनी हिंदी कहा जाता है! मध्यकाल तक खड़ी बोली सिर्फ बोलचाल की भाषा थी, साहित्य की भाषा नहीं थी! उस युग में ब्रजभाषा और अवधी काव्य भाषाएँ थी! ब्रजभाषा को सूरदास ने, अवधी को तुलसीदास ने और मैथिली को विद्यापति ने चरमोत्कर्ष तक पहुँचाया! खड़ी हिंदी को निखारने वालों में भारतेंदु हरिश्चंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा!
हिंदी का महत्त्व (Importance of Hindi) :
हिंदी आज समूचे भारत की संपर्क भाषा बन गई है! हिंदी का विकास अंतर्क्षेत्रीय, राष्ट्रभाषा, राजभाषा, संपर्क भाषा तथा अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हो रहा है! हमारे जन जीवन, सामाजिक सांस्कृतिक संप्रेषण, ज्ञान विज्ञान और सृजनात्मक साहित्य की भाषा के रूप में विकसित हिंदी हमारी ही नहीं अपितु पूरे विश्व की शिक्षा व्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चूकी है! हिंदी भारत में मातृभाषा, प्रथम भाषा, द्वितीय भाषा आदि के रूप में पढाई जा रही है!
राजभाषा हिंदी और इसका क्षेत्र (Hindi and its field) :
हिंदी को 14 सितम्बर 1949 को राजभाषा होने का गौरव प्राप्त हुआ! संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है! उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तरांचल, झारखंड, छतीसगढ़, दिल्ली, अंडमान की राजभाषा है, यहाँ शिक्षा और शासन की भाषा हिंदी है! पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र ने इसे द्वितीय भाषा के रूप में मान्यता दी है!
मानक हिंदी (Standard form of Hindi) :
भौगोलिक भिन्नता के कारण भाषा की अनेक उपभाषा और बोलियों का प्रयोग होने लगता है! अतः भाषा में एकरूपता और अनुशासन लाने के लिए उसके मानक रूप की आवश्यकता होती है! शिष्ट और सुशिक्षित लोगों द्वारा प्रयुक्त व्याकरण सम्मत भाषा रूप ही मानक रूप कहलाता है! हिंदी निदेशालय ने देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण इस प्रकार किया है –
- मानक हिंदी वर्णमाला इस प्रकार है – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
- कुछ व्यंजन के परिवर्तित मानक रूप – ख, छ, झ, ध
- शब्दों के लिखने में परिवर्तन
- मात्राओं के लगाने में परिवर्तन – द्वितीय, हड्डियाँ
- पंचम वर्ण को बिंदु से दर्शाया जाए- गंगा, चंपक, हिंदी
प्रयोजन मूलक हिंदी (Functional Hindi) :
भाषा का मुख्य कार्य है – संप्रेषण! संप्रेषण का अर्थ है – अपनी बात, अपना संदेश, अपना मंतव्य दुसरे तक पहुँचाना! प्रयोजन मूलक हिंदी को कामकाजी हिंदी भी कहते हैं! प्रयोजन मूलक हिंदी सामान्य बोलचाल की हिंदी से भिन्न होती है! इसके चार प्रकार होते हैं –
- कार्यालयी हिंदी (Official Hindi) : सरकारी कामकाज तथा प्रशासन में प्रयुक्त होने वाली हिंदी का एक रूप कार्यालयी हिंदी है! कार्यालयी हिंदी में एक ही शब्द या अपूर्ण वाक्य भी पूरे अर्थ देते हैं; जैसे – तत्काल, गोपनीय, आवश्यक कार्रवाई के लिए!
- तकनीकी हिंदी (Technical Hindi) : विज्ञान, विधि, इंजीनियरिंग, चिकित्सा आदि में प्रयुक्त होने वाली हिंदी को तकनीकी हिंदी के अंतर्गत माना गया है!
- वाणिज्यिक हिंदी (Commercial Hindi) : बैंक, मंडी तथा व्यवसाय में प्रयुक्त हिंदी वाणिज्यिक हिंदी है! मुद्रा, उत्पादन, सहकारिता, पूँजी, दिवालियापन, बिचौलिया आदि शब्द वाणिज्यिक हिंदी के हैं! बाजार की भाषा में ‘चना गरम’, ‘दालें नरम’, ‘चांदी भड़की’ आदि वाणिज्यिक अभिव्यक्तियाँ हैं!
- जनसंचारी हिंदी (Colloquil Hindi) : पत्रकारिता, आकाशवाणी, दूरदर्शन तथा विज्ञापन आदि में प्रयुक्त होने वाली हिंदी जनसंचारी हिंदी कहलाती है! जैसे – मुक्केबाजी, टेस्ट मैच, साझेदारी, सलामी बल्लेबाज आदि!
हिंदी की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ (Sub Language and Dialect of Hindi) :
- एक बड़े भूभाग की भाषा होने के कारण हिंदी की अनेक बोलियाँ विकसित हो गई है! इन्हें पाँच उपभाषा वर्गों में बाँटा गया है –
- पश्चिमी हिंदी – जिसमें ब्रज भाषा, खड़ी बोली, हरियाणवी, बुंदेली, कन्नौजी प्रमुख बोलियाँ है; जो क्रमशः मथुरा, दिल्ली, रोहतक, छतरपुर और कन्नौज के क्षेत्र में बोली जाती है!
- पूर्वी हिंदी – जिसमें अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी प्रमुख बोलियाँ हैं, जो क्रमशः लखनऊ, रीवा और रायपुर के क्षेत्र में बोली जाती है!
- बिहारी हिंदी – जिसमें मगही, मैथिलि, भोजपुरी प्रमुख बोलियाँ हैं, जो क्रमशः गया, दरभंगा और बलिया के क्षेत्र में बोली जाती है!
- पहाड़ी हिंदी – जिसमें मंडियाली, गढ़वाली, कुमाऊँनी प्रमुख बोलियाँ हैं, जो क्रमशः मंडी, टिहरी और अल्मोड़ा के क्षेत्र में बोली जाती है!
- राजस्थानी हिंदी – जिसमें जयपुरी, मेवाती, मारवाड़ी, मेवाड़ी प्रमुख बोलियाँ हैं, जो क्रमशः जयपुर, मेवात, जोधपुर और मारवाड़ के क्षेत्र में बोली जाती है!
प्रमुख बोलियों के कवि और उनकी प्रसिद्द रचनाएँ :
- ब्रज भाषा : सूरदास – सूरसागर, बिहारीलाल – बिहारी सतसई!
- अवधी : तुलसीदास – रामचरितमानस, जायसी – पद्मावत!
- खाड़ी बोली : अमीर खुसरो – पहेलियाँ एवं मुकरियाँ, जयशंकर प्रसाद – कामायनी, मैथिलीशरण गुप्त – साकेत, हरिऔध – प्रिय प्रवास, सुमित्रानंदन पंत – चिदंबरा, रामधारी सिंह दिनकर – उर्वशी!
- मैथिलि : विद्यापति – पदावली!
भाषा और व्याकरण (Language and Grammar) :
भाषा एक व्यवस्था है! जहाँ भी कोई व्यवस्था होती है, वहां उसके कुछ नियम होते है! इसलिए हर भाषा के अपने नियम होते हैं! नियमों की इस पूरी व्यवस्था को ही व्याकरण कहते हैं! व्याकरण मुख्यतः भाषा के नियमों का संकलन एवं विश्लेषण करता है! भाषा की सार्थक इकाई वाक्य है! वाक्य से छोटी इकाई उपवाक्य, उपवाक्य से छोटी इकाई पदबंध, पदबंध से छोटी इकाई पद, पद से छोटी इकाई अक्षर और अक्षर से छोटी इकाई ध्वनि अथवा वर्ण है! इन सब इकाइयों की प्रकृति, रचना और प्रयोग विधि का ज्ञान कराना व्याकरण का काम है! भाषिक व्यवस्था के स्तर –
- वर्ण व्यवस्था (Phonology) : इसके अंतर्गत वर्णों के उच्चारण, लेखन और संयोजन के नियमों का अध्ययन किया जाता है!
- शब्द व्यवस्था (Etymology) : इसमें शब्दों के स्रोत, भेद, रूप तथा रचना का अध्ययन किया जाता है!
- पद व्यवस्था (Morphology) : वाक्य में प्रयुक्त शब्द पद कहलाते हैं! पद व्यवस्था के अंतर्गत पद तथा उसके भेदों तथा रचना आदि का अध्ययन किया जाता है!
- वाक्य व्यवस्था (Syntex) : इसके अंतर्गत वाक्य संरचना, वाक्य भेद, वाक्य रूपांतरण तथा विराम चिन्हों का अध्ययन किया जाता है!
Next Topic (और पढ़ें) : वर्ण, वर्णमाला और वर्ण व्यवस्था क्या है
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