वाक्य रचना व्याकरण के नियमों के अनुसार होनी चाहिए! इसमें उसकी सार्थकता बनी रहती है! व्याकरण के नियमों की अनदेखी करके वाक्य-रचना करने से वे अशुद्ध और अप्रभावशाली हो जाते हैं; जैसे – पकड़ो अवश्य चोर है, ये वाक्य व्याकरण सम्मत नहीं है! वाक्यों की शुद्धता के लिए ‘पदक्रम’ और ‘अन्वय’ का पालन करना अनिवार्य होता है!
१. पदक्रम ( Order ) – पदक्रम में निम्नलिखित बिन्दुओं का पालन किया जाता है –
(i) वाक्यों में आने वाले प्रत्येक पद का क्रम निश्चित होता है! इसमें कर्ता वाक्य के आरंभ में, कर्म मध्य में और क्रिया का प्रयोग अंत में किया जाता है; जैसे – मैंने नाटक में भाग लिया!
(ii) जिसके विषय में प्रश्न किया जाता है, प्रश्नवाचक पद उससे पहले आता है; जैसे – मनोहर किस डॉक्टर के पास गया?
(iii) विस्मयादिसूचक और संबोधन पद वाक्य के आरंभ में आते हैं; जैसे – शाबाश! हमें तुम पर गर्व हैं!
(iv) पूर्वकालिक क्रिया सदा मुख्य क्रिया से पहले आती है; जैसे – प्रतिभा ने बर्फ डालकर शरबत पिलाया!
(v) विशेषणों का प्रयोग संज्ञा से पहले किया जाता है; जैसे – मेरी सफेद कमीज कहाँ है?
(vi) क्रिया-विशेषणों का प्रयोग क्रिया से पहले किया जाता है; जैसे – विद्यार्थी धीरे धीरे गाते हैं!
(vii) मत, नहीं, न – इन निषेधात्मक पदों का प्रयोग क्रिया से पहले किया जाता है; जैसे – बाजार में बिकने वाले कटे फल मत खाओ!
(viii) प्रत्येक पद का उचित प्रयोग किया जाता है; जैसे – बाजार चलाकर साईकिल जाओ (अशुद्ध है)! – साईकिल चलाकर बाजार जाओ (शुद्ध है)!
(ix)यदि ‘न’ का प्रयोग अनुरोध करने के लिए किया जाता है तो इसे वाक्य के अंत में लिखते और बोलते हैं; जैसे – हमारे साथ चलिए न!, मान जाइए न!
(x) ही, तक, भी, मात्र, केवल, भर, तो आदि निपात या अवधारक पदों का प्रयोग उस पद के पश्चात् किया जाता है, जिन पदों पर बल दिया जाता है; जैसे – रेशमा बंगलौर ही जाएगी! मुकेश लस्सी भी पीना चाहता है!
(xi) करण, संप्रदान, अपादान, संबंध – इन कारकों का प्रयोग कर्ता और कर्म के मध्य किया जाता है; जैसे – मनीषा का भाई पूना चला गया!
२. अन्वय ( Co-ordination ) – वाक्य में आने वाले विभिन्न पदों जैसे – लिंग, वचन, कारक, पुरुष और काल आदि में एकरूपता होती है! इसके अनुसार ही क्रिया का प्रयोग होता है! इन पदों में होने वाली एकरूपता को अन्वय कहते हैं!
(क) कर्ता और क्रिया में अन्वय :
(i) यदि वाक्य का कर्ता विभक्ति रहित हो तो क्रिया सदा कर्ता के अनुसार होती है; जैसे – रामू बरतन माँजता है!
(ii) यदि कर्ता के साथ ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग होता है तो क्रिया कर्म के अनुसार होती है; जैसे – कवयित्रियों ने गीत गाए! वासुदेव ने चूड़ियाँ मंगाई!
(iii) यदि कर्ता और कर्म दोनों के साथ विभक्ति का प्रयोग किया जाता है तो क्रिया पुल्लिंग और एकवचन होती है; जैसे – अध्यापिका ने छात्रा को डांटा! मम्मी ने दूध को उबाला!
(iv) यदि कर्ता एक से अधिक होते हैं और उनके साथ विभक्ति नहीं लगती तो क्रिया कर्ताओं के लिंग के अनुसार होती है! ये कर्ता और आदि से समुच्चयबोधक से जुड़े होते हैं; जैसे – मनोज, रमेश और सुरेश पुस्तकें बेच रहे हैं!
(v) कर्ता के लिंग का पता न होने पर क्रिया पुल्लिंग होती है; जैसे – कोई घंटी बजा रहा है!
(vi) विभाक्तिरहित कर्ता यदि ‘या’ से जुड़े होते हैं तो क्रिया अंतिम कर्ता के अनुसार होती है; जैसे – फूल माली या मालिन लाएगी!
(vii) यदि वाक्य में कर्ता के रूप में क्रमशः मध्यपुरुष, अन्य पुरुष और उत्तम पुरुष आएँ तो क्रिया उत्तमपुरुष के लिंग के अनुसार तथा बहुवचन होती है; जैसे – तुम, वह और मैं एकसाथ परिक्षा देने चलेंगे!
(viii) यदि एकवचन कर्ता का प्रयोग आदर-सम्मान के लिए किया जाता है तो क्रिया बहुवचन होती है; जैसे – डॉ अनिरुद्ध प्रसाद विमल समारोह के विशिष्ठ-अतिथि होंगे!
३. विशेष्य (संज्ञा) और विशेषण में अन्वय :
(i) संज्ञा के लिंग के अनुसार विशेषण का लिंग होता है; जैसे – रमा का बड़ा पुत्र इंजिनियर है!
(ii) यदि वाक्य में अनेक संज्ञाएँ हों और उनके लिए एक ही विशेषण आए तो विशेषण के लिंग और वचन उस विशेषण के बाद आई संज्ञा के अनुसार होते हैं; जैसे – उस बेंच पर मोटी महिला और पुरुष बैठे हैं!
(iii) यदि एक संज्ञा के लिए कई विशेषण आएँ तो विशेषण के लिंग और वचन संज्ञा के अनुसार होंगे; जैसे – प्यारा, दुलारा और नन्हा सोनू मुस्करा रहा था!
४. संज्ञा और सर्वनाम का अन्वय :
(i) संज्ञा के स्थान पर आने वाले सर्वनाम के लिंग और वचन, संज्ञा के लिंग और वचन के अनुसार होते हैं; जैसे – भैया आया है और वह कुछ दिन रहेगा!
(ii) आदर और सम्मानसूचक संज्ञाओं के स्थान पर आने वाले सर्वनामों का प्रयोग बहुवचन के रूप में होता है; जैसे – गुरु जी आए तो सबने उन्हें प्रणाम किया!
(iii) किसी विशेष वर्ग के लिए प्रयुक्त होने वाले संज्ञा पदों के स्थान पर आने वाला ‘मैं’ सर्वनाम पद ‘हम’ हो जाता है; जैसे – रमेश ने कहा कि हमें भगवान महावीर का अनुसरण करना चाहिए!
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