वर्ण क्या है? ( Varna : What is Alphabets) :
भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण ( Varn ) है! भाषा विज्ञान में भाषा को ऐसी बौद्धिक क्षमता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो ध्वनि प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्त होती है! भाषा के इन्हीं पारंपरिक ध्वनि प्रतीकों को वर्ण कहते हैं! वर्ण ध्वनियों के उच्चरित और लिखित दोनों रूपों के प्रतिक हैं और ये ही भाषा की लघुतम इकाई हैं! हिंदी के वर्णों को अक्षर भी कहा जाता है! हिंदी के वर्ण देवनागरी लिपि में लिखे जाते हैं!
वर्णमाला (Alphabets) :
वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं! हिंदी भाषा के लेखन में जो चिह्न (वर्ण) प्रयुक्त होते हैं, उनके समूह को वर्णमाला कहते हैं! हिंदी वर्णमाला में पहले स्वर वर्णों और बाद में व्यंजन वर्णों की व्यवस्था है! हिंदी के वर्णों को अक्षर भी कहा जाता है क्योंकि उनका स्वतंत्र उच्चारण हो सकता है! स्वर अपने प्रकृति से ही अक्षर होते हैं, लेकिन हिंदी के व्यंजन वर्णों में भी ‘अ’ वर्ण रहता है! कई बार स्वर रहित व्यंजन का प्रयोग होता है! स्वर रहित वयंजन लिखने के लिए उसके निचे हलंत (,) का चिह्न लगाना पड़ता है! देवनागरी अंक : ० १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९
वर्णों के भेद (Kinds of Alphabets) :
उच्चारण की दृष्टि से हिंदी वर्णमाला के वर्णों को दो भागों में बाँटा जाता है – १. स्वर, २. व्यंजन
स्वर (Vowels) : जिन ध्वनियों के उच्चारण के समय हवा मुंह से बिना अवरोध के निकलती है, उन्हें स्वर कहते हैं! स्वरों का उच्चारण बिना किसी दूसरे वर्ण की सहायता से होता है! अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, ऑ, अं, अः! जिनकी मात्रा क्रमशः अ कोई मात्रा नहीं, ा , ि , ी , ु , ू , ृ , े , ै , ो , ौ , ं , ः है! यद्यपि वर्णमाला में अं और अः को स्वरों के साथ लिखा जाता है पर वास्तव में अं अनुस्वार है और अः विसर्ग है! ये उच्चारण की दृष्टि से व्यंजन ही है, स्वर के बाद ही इनका प्रयोग होता है! विसर्ग का प्रयोग हिंदी में प्रचलित संस्कृत शब्दों में ही होता है! अनुस्वार जिस स्पर्श व्यंजन से पहले आता है, उसी व्यंजन वर्ग के अंतिम नासिक्य वर्ण के रूप में उच्चरित होता है! ऋ का प्रयोग संस्कृत के शब्दों में होता है! ऑ का प्रयोग अंग्रेजी के शब्दों के साथ होता है! और पढ़ें : वर्तनी व्यवस्था, वर्तनी की अशुद्धियाँ और वर्तनी के मानक रूप
स्वरों के भेद (Kinds of Vowels) : हिंदी में स्वरों के मूलतः दो भेद हैं – १. निरनुनासिक, २. अनुनासिक! अनुनासिक स्वर के लिए निरनुनासिक के ऊपर चंद्रबिंदु का प्रयोग होता है! परन्तु यदि शिरोरेखा के ऊपर कोई मात्रा लगी हो तो चंद्रबिंदु के स्थान पर केवल बिंदु का प्रयोग होता है! जैसे – निरनुनासिक उ – अनुनासिक ऊँ
उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर स्वरों को दो भागों में बाँटा जाता है – १. ह्रस्व स्वर २. दीर्घ स्वर
ह्रस्व स्वर (Short Vowels) : जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं, जैसे – अ, इ, उ, ऋ
दीर्घ स्वर (Long Vowels) : जिस स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व की तुलना में अधिक समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं, जैसे – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
अयोगवाह (After Sound) : अनुस्वार और विसर्ग दोनों ध्वनियाँ न स्वर हैं न व्यंजन! in दोनों के साथ योग नहीं है, अतः ये अयोगवाह कहलाती है! जैसे – अं, अः
अनुस्वार (Nasal) : जिस स्वर का उचारण करते समय हवा केवल नाक से निकलती है और उच्चारण कुछ जोर से किया जाता है तथा लिखते समय ऊपर केवल बिंदु लगाया जाता है, उसे अनुस्वार कहते हैं! जैसे – बंदर, कंधा!
व्यंजन (Consonants) : जिन वर्णों के उच्चारण में वायु रूकावट या घर्षण के साथ मुँह से बाहर आती है, उन्हें व्यंजन कहते हैं! व्यंजन का उच्चारण सदा स्वर की सहायता से होता है! हिंदी में कुल 37 व्यंजन हैं, इनमें दो आगत व्यंजन ज़ और फ़ भी शामिल है! कवर्ग – क, ख, ग, घ, ड.! चवर्ग : च, छ, ज, झ, ञ! टवर्ग : ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़! तवर्ग : त, थ, द, ध, न! पवर्ग : प, फ, ब, भ, म! अंतस्थ : य, र, ल, व! उष्म : श, ष, स, ह! संयुक्त व्यंजन : क्ष, त्र, ज्ञ, श्र! आगत वर्ण : ऑ, ज़, फ़! इन्हें निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित गया है – १. स्पर्श व्यंजन(27) २. अंतस्थ व्यंजन(4) ३. ऊष्म व्यंजन(4) ४. आगत वर्ण(2-3) ५. संयुक्त व्यंजन(4)!
- स्पर्श व्यंजन : इनका उच्चारण जीभ द्वारा कंठ, तालु, मूर्धा, दांत, ओष्ठ स्थानों के स्पर्श से होता है! उच्चारण स्थानों के अनुसार इनके वर्ग इस प्रकार है – कवर्ग कंठ, चवर्ग तालु, टवर्ग मूर्धा, तवर्ग दांत, पवर्ग ओष्ठ के स्पर्श से बोला जाता है! ड., ञ, ण, न, म व्यंजन वर्णों का उच्चारण नासिका के साथ क्रमशः कंठ, तालु, मूर्धा, ओष्ठ के स्पर्श से होता है इसलिए इन्हें नासिक्य व्यंजन भी कहते हैं! ड़ और ढ़ के उच्चारण में जीभ पहले ऊपर उठकर मूर्धा के स्पर्श करती है और फिर निचे गिरती है, इसलिए इसे उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं! ये वर्ण शब्द के आरंभ में नहीं आते, लेकिन शब्द के मध्य और अंत में इनका इस्तेमाल होता है!
- अंतस्थ व्यंजन (Semi Vowels) : अंतस्थ क अर्थ होता है स्वर और व्यंजन के बिच में! इनका उच्चारण जीभ, तालु, दांत और होठों के निकट आने से होता है, किंतु श्वास में रूकावट कम होती है! जैसे – य, र, ल, व! इन वर्णों में य और व अर्द्ध स्वर हैं!
- ऊष्म व्यंजन (Sibilants) : इनका उच्चारण रगड़ या घर्षण से उत्पन्न वायु से होता है, जैसे – श, ष, स, ह! श के उच्चारण में जीभ तालु को और स के उच्चारण में दांतों की जड़ को छूती है! ष को मूर्धन्य वर्ण कहा जाता है, किंतु इसका उच्चारण अब प्रायः श की भांति ही होता है! यह संस्कृत से आए शब्दों के लेखन में प्रयुक्त होता है, जैसे – दोष, विषम, पुरुष!
- आगत वर्ण (Foreign Alphabets) : अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी भाषाओँ से आए कुछ शब्दों के शुद्ध उच्चारण के लिए हिंदी में फ़, ज़, ऑ का प्रयोग होता है!
- संयुक्त वर्ण (Combined Consonants) : ये दो व्यंजन वर्णों के संयोग से बनते हैं, ये स्वतंत्र व्यंजन नहीं हैं! जैसे क्ष, त्र, ज्ञ, श्र!
व्यंजनों का वर्गीकरण (Classification of Consonants) :
- स्वरतंत्री के कंपन के आधार पर : बोलते समय वायु प्रवाह से कंठ में स्थित स्वरतंत्री में कंपन होता है! स्वरतंत्री में जब कंपन होता है, तो सघोष ध्वनियाँ उत्पन्न होती है और कंपन नहीं होता है तो अघोष ध्वनियाँ उत्पन्न होती है! सघोष ध्वनियाँ – ग, घ, ड., ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, ज़, ड़, ढ़, य, र, ल, व, ह! अघोष ध्वनियाँ – क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, फ़, श, ष, स!
- श्वास की मात्रा के आधार पर : उच्चारण के समय श्वास की मात्रा के आधार पर व्यंजनों के दो भेद किए जाते हैं – अल्पप्राण, महाप्राण! अल्पप्राण व्यंजन के उच्चारण में मुख से निकलने वाली वायु की मात्रा कम होती है, जैसे – क, ग, ड., च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म, ड़, य, र, ल, व! महाप्राण व्यंजन के उच्चारण में मुख से निकलने वाली श्वास की मात्रा अधिक होती है, जैसे – ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ, ढ़, श, ष, स, ह!
- उच्चारण अवयवों द्वारा श्वास के अवरोध के आधार पर : जब हम व्यंजनों का उच्चारण करते हैं तो उच्चारण अवयव मुख में किसी स्थान विशेष का स्पर्श करते हैं! ऐसे व्यंजनों को स्पर्श व्यंजन कहते हैं, जैसे – क, ख, ग, घ, ड., च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म! जिन व्यंजनों का उच्चारण करते हुए वायु स्थान विशेष पर घर्षण करते हुए निकलती है तो इन व्यंजनों को संघर्षी व्यंजन कहा जाता है, जैसे – य, र, ल, व, ज़, फ़, ड़, ढ़!
व्यंजन गुच्छ (Bunch of Consonant) : व्यंजन गुच्छों में दो या दो से अधिक व्यंजनों का संयोग होता है! जैसे – पक्का, मक्खन, कष्ट, स्वास्थ्य! अक्षर, आज्ञा, साक्षात, ज्ञान, क्षत्रिय जैसे शब्दों में संयुक्त वर्णों का स्वतंत्र प्रयोग हुआ है! जबकि प्रसन्न, स्वच्छंद, मुट्ठी जैसे शब्दों में दो व्यंजनों का गुच्छ का प्रयोग हुआ है! प्रथम अल्पप्राण और द्वितीय महाप्राण व्यंजन का संयुक्त रूप का भी प्रयोग होता है, जैसे – आच्छादन, स्वच्छंद, जत्था!
और पढ़ें (Next Post) : अक्षर, अक्षर विभाजन, बलाघात, अनुतान, संगम और वर्ण विच्छेद
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