शब्द में प्रयुक्त वर्णों की क्रमिकता को वर्तनी (Spellings) कहते हैं! भाषा के दो रूप होते हैं – उच्चरित रूप और लिखित रूप! उच्चरित रूप भाषा का मूल रूप है, जबकि लिखित रूप गौण एवं आश्रित तो है, लेकिन लिखित रूप में दिया गया संदेश समय सीमा तोड़कर अगली पीढ़ी तक सुरक्षित बना रहता है! यह लिखित रूप स्थायी और व्यापक बना रहे, इसके लिए जरुरी है कि लेखन व्यवस्था ठीक ठाक बनी रहे! वर्तनी के प्रयोग की शुद्धता केवल शब्द स्तर पर ही नहीं, अपितु वाक्य, अनुच्छेद स्तर पर भी आवश्यक है! इसलिए वर्तनी व्यवस्था को तीनों स्तर पर समझना जरूरी है!
1. वर्ण स्तर पर (On the basis of alphabates) :
भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण होते हैं! वर्णों को उनके अभीष्ट अर्थ के अनुसार एक क्रम में लिखा जाता है! वर्णों के विन्यास से शब्द बनते हैं! प्रत्येक वर्ण के लिए प्रतिक चिह्न निर्धारित हैं! इन प्रतिक चिह्नों के माध्यम से भाषा लिखी जाती है! भाषा को लिखने का ढंग लिपि कहलाता है! लिपि के चिह्नों को सार्थक क्रम और विन्यास से लिखना वर्तनी कहलाता है! जैसे – भाआ का कोई अर्थ नहीं है, लेकिन आभा का है!
वर्तनी में वर्ण स्तर पर स्वर – व्यंजन, मात्राओं और संयुक्त व्यंजन की चर्चा अपेक्षित है! मात्रा संयोजन और संयुक्त व्यंजन बनाने की दृष्टि से सभी वर्णों को चार कोटियों में बाँटा गया है!
- खड़ी पाई वाले वर्ण : ये वे वर्ण हैं जिनके अंत में खड़ी पाई होती है! जैसे – ख, ग, घ, च, झ, त, थ, ध, व, प, म, स आदि! इन वर्णों में मात्रा का संयोजन किसी अन्य व्यंजन के साथ करना हो तो खड़ी पाई को हटा दिया जाता है और उसके साथ परवर्ती वर्ण को जोड़ दिया जाता है! जैसे – ग्वाला, ख्याल, शब्द प्यास आदि!
- मध्य में खड़ी पाई वाले वर्ण : इन वर्णों के मध्य में खड़ी पाई होती है, जैसे – क, फ! इन वर्णों पर मात्रा खड़ी पाई पर लगाई जाती है और इन वर्णों को मिलाकर लिखते समय खड़ी पाई के बाद आने वाले अंश के झुकाव को हटाकर उसे परवर्ती वर्ण के साथ जोड़ दिया जाता है! जैसे – पक्का, रफ़्तार, फ्लू!
- छोटी खड़ी पाई वाले वर्ण : कुछ वर्णों में खड़ी पाई बहुत छोटी होती है और उसके निचे कुछ गोलाकार रूप होता है! जैसे – ट, ठ, ड, ढ, ढ़, ह! जब इन वर्णों का परवर्ती व्यंजन के साथ संयोजन करना होता है! तो इन व्यंजनों के निचे हलंत का चिह्न लगा दिया जाता है! जैसे – गड्ढा!
- विशिष्ट वर्ण : ‘र’ मात्रा और संयुक्ताक्षर बनाने में ‘र’ की विशिष्ट स्थिति है! ‘र’ में उ और ऊ की मात्रा वर्ण के बिच में लगती है, जैसे – रुपया, रूप! ‘र’ के साथ व्यंजन के संयोजन की दो स्थितियां हो सकती है! १. स्वर रहित ‘र’ + व्यंजन २. स्वर सहित ‘र’ + व्यंजन, जैसे – कर्म, अर्थ! इसे रेफ कहते हैं! यदि व्यंजन में कोई मात्रा लगी हो तो रेफ मात्रा के ऊपर लगता है, जैसे – वर्मा! जब ‘र’ के साथ कोई स्वर रहित व्यंजन संयुक्त होता है तब ‘र’ चार प्रकार से लिखा जाता है! १. पूरी पाई वाले सभी स्वर रहित व्यंजन जब स्वर सहित ‘र’ के साथ संयुक्त होते हैं तब र को (,) के रूप में लिखते हैं; जैसे – क्रम, ब्रज! २. स्वर रहित ‘द’ और ‘ह’ जब स्वर सहित ‘र’ के साथ संयुक्त होते हैं तब ‘र’ (,) के रूप में लिखे जाते हैं; जैसे – द्रव, ह्रास! ३. स्वर रहित ‘ट’ और ‘ड’ जब स्वर सहित ‘र’ के साथ संयुक्त होते हैं तब ‘र’ (^) के रूप में लिखे जाते हैं; जैसे – ट्रक, राष्ट्र, ड्रामा! ४. स्वर रहित ‘श’ जब स्वर सहित ‘र’ के साथ संयुक्त होता है तब ‘श्र’ के रूप में लिखे जाते हैं; जैसे आश्रय! इसी प्रकार ऋ की मात्रा भी श्रृ बन जाती है; जैसे श्रृंगार!
2. शब्द स्तर पर (On the basis of words) :
वर्णों के मेल से शब्द बनते हैं! शब्द की सीमा का निर्धारण उसकी शिरोरेखा से होता है! सामासिक पदों के बिच में योजक चिह्न का प्रयोग होता है! जैसे – माता – पिता!
- जब किसी शब्द में श, ष, स में से तीन या दो का प्रयोग एक साथ हो तो वे वर्णमाला के क्रम से (श, ष, स) ही आते हैं, जैसे – शीर्षासन, शेष, शासन!
- स्वर रहित पंचमाक्षर जब अपने वर्ग के व्यंजन के पहले आता है, तब उसे अनुस्वार के रूप में लिखा जाता है! जैसे – पंकज, पंखा, कंघा!
- जब कोई पंचमाक्षर दुसरे पंचमाक्षर के साथ संयुक्त होता है तब पंचमाक्षर ही लिखा जाता है, वहां अनुस्वार का प्रयोग नहीं होगा! जैसे – अन्न, सम्मान, अक्षुण्ण!
- यदि य, ह, व के पहले स्वर रहित पंचमाक्षर हो तो वहां पंचमाक्षर ही रहता है, अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता है; जैसे – पुण्य, अन्य, साम्य!
- जब अंतस्थ और ऊष्म के पहले ‘सम्’ उपसर्ग लगता है तब वहाँ म् के स्थान पर अनुस्वार ही लगता है; जैसे – सम् +यम = संयम!
- अनुनासिक और अनुस्वार के अंतर को भी ध्यान में रखना चाहिए! जैसे – हँसना, आँख! यदि किसी व्यंजन पर स्वर की मात्रा शिरोरेखा के ऊपर हो तो अनुनासिक के स्थान पर अनुस्वार का ही प्रयोग होता है; जैसे – सिंचाई, गोंद!
- कुछ अवर्गीय व्यंजनों के साथ अनुस्वार का ही प्रयोग होता है; जैसे – अंश, कंस, वंश!
- जिस शब्द के अंत में ‘ई’ या उसकी मात्रा ‘ी’ हो तो उसका बहुवचन बनाते समय ‘ई’ का ‘इ’ हो जाएगा; जैसे- मिठाई – मिठाइयाँ, नदी – नदियाँ!
- जिस शब्द के अंत में ‘ऊ’ की मात्रा हो तो उसका बहुवचन बनाते समय ‘ऊ’ का ‘उ’ हो जाएगा; जैसे – लड्डू – लड्डुओं!
- कुछ शब्दों के दो रूप प्रचलित हैं, किंतु इनके मानक रूपों का प्रयोग करना चाहिए; जैसे – गये का मानक रूप है गए, नयी – नई, गयी – गई, हुयी – हुई, वस्तुयें – वस्तुएँ!
- संस्कृत से आए जिन शब्दों के अंतिम वर्ण पर हलंत का चिह्न लगता है, वे प्रायः हलंत के बिना लिखे जाने लगे है; जैसे – श्रीमान, भगवान! किंतु कुछ शब्दों में हलंत का प्रचलन अब भी है; जैसे – सम्यक्!
3. वाक्य स्तर पर (On the basis of Sentences) :
वाक्य स्तर पर वर्तनी संबंधी अशुद्धियों से बचने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए –
- लिखते समय शब्दों के बिच की दूरी का ध्यान न रखने से कभी – कभी वाक्य का अर्थ ही बदल जाता है, जैसे – १. जल सा लग रहा है! २. जलसा लग रहा है!
- वाक्य लेखन में समुचित विराम चिह्नों का प्रयोग करना चाहिए! जब तक वक्ता के आशय के अनुसार विराम चिह्न का प्रयोग नहीं किया जाता तब तक अर्थ स्पष्ट नहीं होता!
हिंदी वर्तनी के मानक रूप (Standard form of Spellings) :
हिंदी वर्तनी की एकरूपता के लिए उसका मानक रूप सुनिश्चित करना नितांत आवश्यक है! हिंदी लिखते समय मानक वर्तनी का ही प्रयोग करना चाहिए! हिंदी निदेशालय द्वारा इस दिशा में दिए गए कुछ प्रमुख निर्देश निम्नलिखित हैं :
1. संयुक्त वर्ण (Combined Alphabets) : १. खड़ी पाई वाले व्यंजन – खड़ी पाई वाले व्यंजनों का संयुक्त रूप पाई हटाकर बनाना चाहिए; जैसे – कुत्ता, छज्जा, लग्न! २. ‘क’ और ‘फ’ के संयुक्ताक्षरों को निम्न रूपों में बनाया जाए – संयुक्त, विभक्त, दफ्तर, रफ्तार! ३. ड., छ, ट, ड, द, और ह के संयुक्ताक्षरों का हल् चिह्न लगाकर बनाया जाए; जैसे – लड्डू, विद्या, गड्ढा! ४. हल् चिह्न लगे वर्ण से बनने वाले संयुक्ताक्षर के साथ ‘इ’ का प्रयोग निम्न रूप में होगा; जैसे – द्वितीय!
2. विभक्ति चिह्न (Case ending Symbol) : १. हिंदी के विभक्ति चिह्नों को संज्ञा शब्दों में प्रतिपादकों से अलग लिखा जाए; जैसे – ऋचा ने, ऋचा को, ऋचा से, ऋचा के लिए, ऋचा का, ऋचा में! २. सर्वनाम शब्दों में विभक्ति चिह्न प्रतिपादकों के साथ लगाकर लिखने चाहिए; जैसे – उसने, उसको, उससे आदि! ३. यदि सर्वनाम के साथ दो विभक्ति चिह्न हो तो पहले विभक्ति चिह्न को प्रतिपादक के साथ मिलाकर तथा दुसरे को अलग लिखना चाहिए; जैसे – उसके लिए, उनमें से आदि! ४. सर्वनाम और विभक्ति के बीच ही, तक आदि आएं तो उन्हें विभक्ति से अलग लिखना चाहिए; जैसे – आप ही के लिए, मुझ तक को, आप ही ने आदि!
3. क्रियापद (A Verb) : संयुक्त क्रियाओं में सभी सम्मिलित क्रियाएँ अलग अलग लिखनी चाहिए; जैसे – उछला करती थी, आया करती थी, सुनाते चले जा रहे थे, खिलाए जा रहे थे आदि!
4. हाइफ़न (Hyphen) : १. द्वंद्व समास के दोनों पदों के मध्य हाइफ़न लगाना चाहिए; जैसे – माता-पिता, गुरु-शिष्य, सीता-राम, दाल-चावल, आदान-प्रदान आदि! २. सा और जैसा आदि से पहले हाइफ़न लगाना चाहिए; जैसे – कमल-सी, राम-जैसा, तुम-सा, सूर्य-सा, चंद्र-जैसी आदि!
5. अव्यय (An Indiclinable) : १. ‘तक’ और ‘साथ’ आदि अव्यय सदा अलग लिखने चाहिए; जैसे – आपके साथ, उस तक, वहाँ तक, सबके साथ आदि! २. सम्मान प्रकट करने के लिए श्री और जी को अलग रूप में लिखना चाहिए; जैसे – श्री बालकृष्ण, पिता जी, श्रीमती कृष्णा जी, गुरु जी आदि! ३. समस्त पदों में प्रति, मात्र, यथा आदि अव्यय अलग नहीं लिखे जाने चाहिए; जैसे – प्रतिपल, प्रतिदिन, यथाशक्ति, मानवमात्र आदि!
6. श्रुतिमूलक ‘य’ और ‘व’ का प्रयोग : १. जहाँ श्रुतिमूलक य और व का प्रयोग विकल्प से होता है, वहाँ न किया जाए; जैसे – किए- किये, नई- नयी, हुआ-हुवा आदि! २. जहाँ ‘य’ श्रुतिमूलक व्याकरणिक परिवर्तन न होकर शब्द का मूल हो वहाँ उसे मूल रूप में ही लिखना चाहिए; जैसे – स्थायी, अव्ययी, दायित्व आदि! इन्हें स्थाई, अव्यई नहीं लिखना चाहिए!
7. अनुस्वार (Nasal) : १.यदि पंचम वर्ण के बाद उसी के वर्ग का कोई वर्ण आता है तो पंचम वर्ण के स्थान पर अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए; जैसे – गंगा, कंघा, चंचल, ठंड, संध्या आदि! २. यदि पाँचवें वर्ण के बाद किसी अन्य वर्ग का वर्ण है तो पाँचवाँ वर्ण नहीं बदलेगा; जैसे – सन्मार्ग, अन्य, चिन्मय आदि! ३. यदि पाँचवें वर्ण के बाद के बाद वही वर्ण दुबारा आए तो पाँचवाँ वर्ण नहीं बदलेगा; जैसे – सम्मलेन, अन्न, प्रसन्न आदि!
8. अनुनासिका चंद्रबिंदु (Semi Nasal) : चंद्रबिंदु का जहाँ आवश्यक हो प्रयोग अवश्य करना चाहिए! ऐसा न करने से अर्थ बदल सकता है; जैसे – हंस (एक पक्षी), हँस (हँसी) आदि!
9. विदेशी ध्वनियाँ (Foreign words) : १. हिंदी में अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी के मूल शब्दों का प्रयोग होता है! वस्तुतः ये हिंदी के अंग बन चुके हैं! इनका शुद्ध उच्चारण करने के लिए इन्हें उसी रूप में लिखना चाहिए; जैसे – ग़ज़ल, फ़ारसी, फ़ेल आदि! हिंदी में अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी की पाँच ध्वनियाँ क़, ख़, ग़, ज़, फ़ मुख्य रूप से आई हैं! इनमें क़, ख़, ग़ तो लगभग हिंदी में मिल चुकी हैं! ज़ और फ़ ध्वनियाँ प्रचलन में हैं! अतः जहाँ आवश्यक हो इनका प्रयोग नुक्ता लगा कर ही करना चाहिए! इन्हें न लगाने से शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं; जैसे – राज, राज़, फ़न, फन आदि! २. अंग्रेजी के अनेक शब्दों में अर्धवृत ओ का प्रयोग किया जाता है, ऐसे शब्दों के लिए ऑ लगाना चाहिए; जैसे – टॉफी, डॉक्टर, आदि!
10. शब्दों के दो रूप मान्य : ये दोनों रूप शुद्ध है – बरफ-बर्फ, फुरसत-फुर्सत, दोबारा-दुबारा, परदा-पर्दा, आखिर-आखीर, भरती-भर्ती, गरमी-गर्मी, दुकान-दूकान, वापिस-वापस, सरदी-सर्दी, बरतन-बर्तन, बिल्कुल-बिलकुल आदि!
11. हल् चिह्न : हिंदी में संस्कृत के मूल शब्द उसी रूप में अर्थात् तत्सम रूप में प्रयुक्त होते हैं! इनमें हल् चिहन लगता है! कुछ ऐसे शब्द हैं जिनके साथ हल् चिह्न लुप्त हो चुका है; जैसे – महान, भगवान आदि!
12. स्वन-परिवर्तन : संस्कृत मूल के तत्सम शब्दों को हिंदी में उसी वर्तनी में लिखना चाहिए, इनमें परिवर्तन न किए जाएँ! जैसे – ब्रह्मा, ब्राह्मण, चिह्न, उऋण, ऋषि आदि को इसी रूप में लिखना चाहिए, न की ब्रम्हा, ब्राम्हण, चिन्ह आदि के रूप में!
13. विसर्ग का प्रयोग : संस्कृत के जिन शब्दों में विसर्ग का प्रयोग होता है यदि उनका हिंदी में प्रयोग किया जाए तो विसर्ग अवश्य लगाना चाहिए; जैसे – प्रातःकाल, अतः आदि!
14. ऐ, औ का प्रयोग : हिंदी में ऐ और औ ध्वनियों का प्रयोग दो रूपों में किया जाता है; जैसे – १. ऐ – है, गैस, कैथल, गवैया, मैया आदि! २. नौकर, चौकीदार, कौआ आदि! in दोनों प्रकार की ध्वनियों में ऐ और औ का ही प्रयोग करना चाहिए! गवय्या, मय्या आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए!
15. पूर्वकालिक प्रत्यय : पूर्वकालिक प्रत्यय में ‘कर’ क्रिया के साथ मिलाकर लिखा जाए; जैसे – पढ़कर, खाकर, नहाकर, रोकर, सोकर, खा-पीकर आदि!
16. अनुच्छेदों के विभाजन में वर्णों और अंकों का प्रयोग : अनुच्छेदों के विभाजन और उपविभाजन में क्रम लिखते समय अंग्रेज के A, B, C और a, b, c के लिए क, ख, ग या अ, ब, स या अ, आ, इ का प्रयोग किया जाता है! अंकों 1, 2, 3 के साथ-साथ आवश्यकतानुसार (i), (ii), (iii) आदि का प्रयोग भी मान्य है!
हिंदी शब्दों के उच्चारण संबंधी अशुद्धियाँ और उनका निराकरण :
शुद्ध भाषा बोलने और लिखने में शुद्ध उच्चारण का विशेष महत्व है! अतः शुद्ध उच्चारण पर अधिक बल देने की आवश्यकता है! कई बार अपनी बोली के प्रभाव के कारण या शब्दों के स्वरुप का ठीक ठीक ज्ञान न होने के कारण उच्चारण में अशुद्धियाँ हो जाती है! निचे कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं जिनके उच्चारण में प्रायः अशुद्धियाँ होती है! इनके शुद्ध रूप भी दिए जा रहे हैं :
अशुद्ध – शुद्ध : आधीन – अधीन, हस्ताक्षेप – हस्तक्षेप, अहार – आहार, परलौकिक – पारलौकिक, बुद्धी – बुद्धि, व्यक्ती – व्यक्ति, नदीयाँ – नदियाँ, पितंबर – पीतांबर, दिक्षा – दीक्षा, आशिर्वाद – आशीर्वाद, चहिए – चाहिए, अनधिकार – अनाधिकार, मुनी – मुनि, परिवारिक – पारिवारिक, अतिथी – अतिथि, हानी – हानि, निरिक्षण – निरीक्षण, अत्याधिक – अत्यधिक, नराज – नाराज, कवी – कवि, शक्ती – शक्ति, दिवाली – दीवाली, बिमारी – बीमारी, शुन्य – शून्य, साधू – साधु, पशू – पशु, शिशू – शिशु, दयालू – दयालु, टिप्पनी – टिप्पणी, रनभूमि – रणभूमि, विशिष्ठ – विशिष्ट, मख्खी – मक्खी, बस्तु – वस्तु, बनस्पति – वनस्पति, साखा – शाखा, पुज्य – पूज्य, मख्खन – मक्खन, जिव्हा – जिह्वा, बन – वन, श्रेष्ट – श्रेष्ठ, घनिष्ट – घनिष्ठ, विशिष्ठ – विशिष्ट, अभिष्ठ – अभीष्ट, प्रशाद – प्रसाद, शारांश – सारांश, नमश्कार – नमस्कार, दिछा – दिक्षा, लक्छन – लक्षण, नछत्र – नक्षत्र, विस्वास – विश्वास, स्मिरती – स्मृति, रिषी – ऋषि, ग्रहस्थ – गृहस्थ, ग्रहित – गृहीत, ह्रदय – हृदय, दूंगा – दूँगा, गूंगा – गूँगा, लठ्ठा – लट्ठा, कछा – कक्षा, गड़ना – गणना, श्रंगार – श्रृंगार, रितु – ऋतू, किरपा – कृपा, आंख – आँख, कांच – काँच, प्रसंसा – प्रशंसा, अमावश्या – अमावस्या, रास्ट्र – राष्ट्र, छमा – क्षमा, विपछ – विपक्ष
स्वरों के प्रयोग संबंधी अशुद्धियाँ :
अशुद्ध – शुद्ध : अवाज़ – आवाज़, कालीदास – कालिदास, अलोकिक – अलौकिक, पत्नि – पत्नी, अन्ताक्षरी – अंत्याक्षरी, कवियत्री – कवयित्री, अनुकुल – अनुकूल, बल्की – बल्कि, क्रिपा – कृपा, सप्ताहिक – साप्ताहिक, गृहणी – गृहिणी, पड़ौस – पड़ोस, इसकूल – स्कूल, परिक्षा – परीक्षा, श्रीमति – श्रीमती, नयी – नई, कवीता – कविता, व्यवसायिक – व्यावसायिक, तिथी – तिथि, बहिन – बहन, मुक्ती – मुक्ति, रूचि – रुची, सुर्य – सूर्य, वधु – वधू, प्रमाणिक – प्रामाणिक, सुचना – सूचना, मुहल्ला – मोहल्ला, जूआ – जुआ, स्थिती – स्थिति, गिता – गीता, मीत्र – मित्र, प्रचार्य – प्राचार्य, उर्जा – ऊर्जा, क्योंकी – क्योंकि, इतिहासिक – ऐतिहासिक, क्रांती – क्रांति, पत्रीका – पत्रिका, जुता – जूता, लोकोक्ती – लोकोक्ति, स्वामि – स्वामी, निरजा – नीरजा, स्थाई – स्थायी, मनायी – मनाई, प्रीती – प्रीति
अनुस्वार और अनुनासिका की अशुद्धियाँ :
अशुद्ध – शुद्ध : आँबा – अंबा, फांसना – फाँसना, सांस – साँस, आंगन – आँगन, गूंगा – गूँगा, चीटीं – चींटी, जहापनांह – जहाँपनाह, आंधी – आँधी, गँगा – गंगा, सांझ – साँझ, कांच – काँच, हंसना – हँसना, ढंक – ढँक, मुंह – मुँह, कँघी कंघी, गूंज – गूँज, गंवार – गँवार, चंवर – चँवर, चांद – चाँद, डांवाडोल – डाँवाडोल, डंसना – डँसना, दोंनो – दोनों, अंगूठी – अँगूठी, आंख – आँख, बांह – बाँह, उंगली – उँगली
हिंदी लेखन में व्यंजनों का अशुद्ध प्रयोग :
व्यंजनों के प्रयोग में अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप! शुद्ध और अशुद्ध शब्दों के साथ –
अशुद्ध – शुद्ध : आगानुसार – आज्ञानुसार, अंधाधुन्द – अंधाधुंध, अपव्य – अपव्यय, आहावन – आह्वान, असविकृत – अस्वीकृत, आरोगय आरोग्य, इर्श्या – ईर्ष्या, उलंघन – उल्लंघन, गल्त – गलत, योधा – योद्धा, तंबाखू – तंबाकू, व्यंगय – व्यंग्य, शुध – शुद्ध, कछुवा – कछुआ, गदार – गद्दार, तिरष्कृत – तिरस्कृत, दृष्य – दृश्य, श्लेश – श्लेष, विर्धमी – विधर्मी, सन्मान – सम्मान, स्थाई – स्थायी, हाश्य – हास्य, उज्जवल – उज्ज्वल, उशर – ऊसर, ख्वाइश – ख्वाहिश, गुजिया – गुझिया, जगतनाथ – जगन्नाथ, नियारा – न्यारा, सताईस – सत्ताईस, हिरदय – हृदय, शमशान – श्मशान, वकतव्य – वक्तव्य, बुधू – बुद्धू, ब्रम्हा – ब्रह्मा, शगुन – शकुन, प्रौड़ – प्रौढ़
लेखन के अभाव के कारण तथा अमानक वर्तनी प्रयोग संबंधी अशुद्धियाँ :
अशुद्ध – शुद्ध : युधिष्ठर – युधिष्ठिर, रावन – रावण, मिशर – मिश्र, कबज – कब्ज, लछमन – लक्ष्मण, उदेश्य – उद्देश्य, कृतघन – कृतघ्न, परजा – प्रजा, अधयापक – अध्यापक, व्यंग – व्यंग्य, रितु – ऋतु, विदवान – विद्वान, साम – शाम, सासन – शासन, त्यौहार – त्योहार, सायम – सायं, तपस्वनी – तपिस्वनी, केस – केश, दोकान – दुकान, ठाकुराइन – ठकुराइन, लराई – लड़ाई, मुहल्ला – मोहल्ला, दिये – दिए, फवारा – फव्वारा
लेखन और वर्तनी की अज्ञानता के कारण अशुद्धियाँ :
अशुद्ध – शुद्ध : ब्रम्हा – ब्रह्मा, चिन्ह – चिह्न, आवहान – आह्वान, बछ्छा – बच्छा, खट्ठा – खट्टा, उज्जवल – उज्ज्वल, आल्हाद – आह्लाद, धब्भा – धब्बा, जयोतसना – ज्योत्स्ना, दूख – दुख, अतैव – अतएव, निसार – निस्सार, निकपट – निष्कपट, बराह्मण – ब्राह्मण, आर्शीवाद – आशिर्वाद, तीवर – तीव्र, पराप्त – प्राप्त, उपरोक्त – उपर्युक्त, धरम – धर्म, निरणय – निर्णय, उर्त्तीण – उत्तीर्ण, समुदर – समुद्र, निरोग – नीरोग, निचेतन – निश्चेतन, पुनह – पुनः, मरुथल – मरुस्थल
एक से सौ तक संख्यावाचक शब्दों के मानक रूप :
एक (one) – १ , दो (two) – २ , तीन (three) – ३ , चार (four) – ४ , पाँच (five) – ५ , छह (six) – ६ , सात (seven) – ७ , आठ (eight) – ८ , नौ (nine) – ९ , दस (ten) – १०
ग्यारह (eleven) – ११ , बारह (twelve) – १२ , तेरह (thirteen) – १३ , चौदह (fourteen) – १४ , पंद्रह (fifteen) – १५ , सोलह (sixteen) – १६ , सत्रह (seventeen) – १७ , अठारह (eighteen) – १८
उन्नीस (nineteen) – १९ , बीस (twenty) – २० , इक्कीस (twenty one) – २१ , बाईस (twenty two) – २२ , तेईस (twenty three) – २३ , चौबीस (twenty four) – २४ , पच्चीस (twenty five) – २५
छब्बीस (twenty six) – २६ , सत्ताईस (twenty seven) – २७ , अट्ठाईस (twenty eight) – २८ , उनतीस (twenty nine) – २९ , तीस (thirty) – ३० , इकतीस (thirty one) – ३१ , बत्तीस (thirty two) – ३२
तैंतीस (thirty three) – ३३ , चौंतीस (thirty four) – ३४ , पैंतीस (thirty five) – ३५ , छत्तीस (thirty six) – ३६ , सैंतीस (thirty seven) – ३७ , अड़तीस (thirty eight) – ३८ , उनतालीस (thirty nine) – ३९
चालीस (forty) – ४० , इकतालीस (forty one) – ४१ , बयालीस (forty two) – ४२ , तैंतालीस (forty three) – ४३ , चवालीस (forty four) – ४४ , पैंतालिस (forty five) – ४५
छियालीस (forty six) – ४६ , सैंतालिस (forty seven) – ४७ , अड़तालीस (forty eight) – ४८ , उनचास (forty nine) – ४९ , पचास (fifty) – ५० , इक्यावन (fifty one) – ५१
बावन (fifty two) – ५२ , तिरपन (fifty three) – ५३ , चौवन (fifty four) – ५४ , पचपन (fifty five) – ५५ , छप्पन (fifty six) – ५६ , सतावन (fifty seven) – ५७ , अठावन (fifty eight) – ५८
उनसठ (fifty nine) – ५९ , साठ (sixty) – ६० , इकसठ (sixty one) – ६१ , बासठ (sixty two) – ६२ , तिरसठ (sixty three) – ६३ , चौंसठ (sixty four) – ६४ , पैंसठ (sixty five) – ६५ , छियासठ (sixty six) – ६६
सड़सठ (sixty seven) – ६७ , अड़सठ (sixty eight) – ६८ , उनहत्तर (sixty nine) – ६९ , सत्तर (seventy) – ७० , इकहत्तर (seventy one) – ७१ , बहत्तर (seventy two) – ७२ , तिहत्तर (seventy three) – ७३
चौहत्तर (seventy four) – ७४, पचहतर (seventy five) – ७५ , छिहत्तर (seventy six) – ७६ , सतहत्तर (sevety seven) – ७७ , अठहत्तर (seventy eight) – ७८ , उनासी (seventy nine) – ७९, अस्सी (eighty) – ८०
इक्यासी (eighty one) – ८१ , बयासी (eighty two) – ८२ , तिरासी (eighty three) – ८३ , चौरासी (eighty four) – ८४, पचासी (eighty five) – ८५ , छियासी (eighty six) – ८६ , सतासी (eighty seven) – ८७
अठासी (eighty eight) – ८८ , नवासी (eighty nine) – ८९ , नब्बे (ninety) – ९० , इक्यानवे (ninety one) – ९१ , बानवे (ninety two) – ९२ , तिरानवे (ninety three) – ९३ , चौरानवे (ninety four) – ९४
पचानवे (ninety five) – ९५ , छियानवे (ninety six) – ९६ , सतानवे (ninety seven) – ९७ , अठानवे (ninety eight) – ९८ , निन्यानवे (ninety nine) – ९९ , सौ (hundred) – १००
Next Topic : संधि, परिभाषा, संधि के भेद, संधि के नियम
उम्मीद है ये उपयोगी पोस्ट आपको जरुर पसंद आया होगा! पोस्ट को पढ़ें और शेयर करें (पढाएं) तथा अपने विचार, प्रतिक्रिया, शिकायत या सुझाव से नीचे दिए कमेंट बॉक्स के जरिए हमें अवश्य अवगत कराएं! आप हमसे हमसे ट्विटर और फेसबुक पर भी जुड़ सकते हैं!