राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने एनसीपी के स्थापना दिवस के मौके पर सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल के रूप में दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा की है। जिसके बाद राजनीतिक गलियारे में तमाम तरह के अटकलें लगने लगे, वजह थी, एनसीपी के प्रमुख नेता अजित पवार का इस लिस्ट में कहीं नाम न होना। अजित पवार का नाम न होने से महाराष्ट्र की राजनीति में अलग ही चर्चा शुरू हो गई है की क्या अजित पवार को पार्टी में किनारे लगा दिया गया है?
एनसीपी चीफ शरद पवार ने पार्टी के 25वें स्थापना दिवस के मौके पर खास घोषणा की। उन्होंने माइक संभाला और उनहोंने पार्टी के दो नए कार्यकारी अध्यक्ष के नाम की घोषणा कर दी। वो नाम था शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और पूर्व नागरिक उडडयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल का। अब महाराष्ट्र की राजनीति में इनके नाम की घोषणा से ज्यादा चर्चा इस बात की होने लगी की आखिर पार्टी के वरिष्ठ नेता, शरद पवार के बाद नंबर 2 और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजित पवार का नाम इसमें कहीं क्यों नहीं?
दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की पीछे पवार की क्या मंशा हो सकती है? पहली मंशा तो ये हो सकती है की शरद पवार अपनी बेटी सुप्रिया सुले को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपना चाहते हैं, उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित करना चाहते हैं। और उन्होंने सुप्रिया को एक तरह से अपना उतराधिकारी घोषित कर भी दिया। लेकिन सवाल उठता है की ऐसा करने के लिए शरद पवार को दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की क्या जरुरत पड़ गयी?
उसकी वजह है एनसीपी के अन्दर के अंदरखाने चल रही गुटबाजी और विरासत की जंग। शरद पवार काफी समय से अपनी बेटी को विरासत सौपना चाहते हैं, लेकिन उनके भतीजे और कद्दावर नेता अजित पावर भी इस विरासत पर अपना हक जताते रहते हैं। यहाँ तक की कई बार अजित पवार बगावती तेवर भी दिखा चुके हैं। इसलिए पार्टी के अन्दर के गुटबाजी को देखते हुए शरद पवार ने सीधा रास्ता न लेकर दो कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया, ताकि सीधी टकराव के विरोधी धार को राजनीतिक और भावनात्मक रूप से थोडा कुंद कर दिया जाए।
अब शरद पवार की मंशा को भांपना आसन नहीं, उनकी मंशा सिर्फ वही भांप सकते हैं, इसलिए उनकी मंशा चाहे जो हो लेकिन इस घोषणा के बाद ये तो साफ़ हो गया है की शरद पवार ने पार्टी में अजित पवार को कोई जिम्मेदारी नहीं सौंपी है। इसके पीछे की वजह ये भी हो सकता है की शरद पवार, बार बार बदले रंग दिखा रहे अजित पवार को एक गंभीर पॉलिटिकल संदेश देना चाहते हों। साथ ही सुप्रिया सुले के राजनीति सफ़र के रास्ते में बार बार काँटा बन रहे अजित पवार को धीरे धीरे राजनीतिक परिदृश्य में कमजोर करने की भी कवायद हो सकती है। इसके साथ ही सुप्रिया सुले की स्थिति को पार्टी में धीरे धीरे मजबूत करते जा रहे हैं और वही शरद पवार की अगली उत्तराधिकारी हैं, ऐसा भी लगभग तय करते जा रहे हैं।
दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की खबर के बाद, या यूँ कहें की सुप्रिया सुले के उत्तरिधिकार को लगभग पक्का कर दिए जाने के बाद, पार्टी पर अधिकार की बात तो अब अजित पवार के लिए दूर की कौड़ी हो गयी है, ऐसे में अजित पवार और उनके समर्थकों का रुख क्या होगा, ये देखना भी महत्वपूर्ण होगा। क्या अजित पवार इस फैसले को सर माथे पर लेंगे और सुप्रिया सुले के उत्तरिधिकार की अधिकार को स्वीकार कर लेंगे, या फिर से बगावती रुख अपनाएँगे? अगर बगावती सुर अपनाएँगे तो पार्टी में रहकर अपना विरोध करेंगे या अपना अलग रास्ता चुनेंगे?
हालाँकि राजनीतिक विश्लेषक इस फैसले के या भी मतलब निकल रहे हैं की सुप्रिया सुले को पूरी पार्टी का उत्तराधिकार मिला है, और राष्ट्रिय राजनीति में वो काम करेंगी, लेकिन महाराष्ट्र की जिम्मेदारी अजित पवार के कंधे पर ही रहेगा, कल को अगर सीएम बनने का मौका आता है तो अजित पवार का नाम दावेदारी में पहले आएगा।