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Home History

Onam | ओणम को भारत के लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। इसकी क्या धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विशेषता है?

by Ganga News Desk
4 September 2025
in History, जानकारी, धर्म, सामाजिक
Onam | ओणम को भारत के लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। इसकी क्या धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विशेषता है?
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Onam | ओणम को भारत के लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। इसकी क्या धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विशेषता है? भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में अपनी विशेष पहचान रखने वाला त्यौहार ओणम पूरे उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। ओणम को भारत के बड़े और लोकप्रिय त्योहारों में से एक माना जाता है। इसे मुख्य रूप से केरल में मनाया जाता है. आइए जानते हैं हम इस त्यौहार को क्यों मनाते हैं और इसकी क्या धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विशेषता है?

 

ओणम केरल का एक वार्षिक पौराणिक और फसल उत्सव है जो राजा महाबली के पृथ्वी पर वापस आने की खुशी में मनाया जाता है. यह त्योहार मलयालम कैलेंडर के चिंगम मास में मनाया जाता है, जिसे वर्ष का प्रथम मास भी माना जाता है, अर्थात यह त्योहार मलयाली नव वर्ष का प्रतीक भी है, जो 10 दिनों तक चलता है। ओणम को मनाने के पीछे कई कारण हैं. लेकिन मुख्य रूप से ओणम को भगवान वामन की जयन्ती और राजा महाबली की वापसी के स्वागत के रूप में मनाया जाता हैं.

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ओणम के उत्सव का प्रारंभ त्रिक्काकरा के वामन मन्दिर से प्रारम्भ होता है। ऐसा माना जाता है की राजा महाबलि सबसे पहले यहीं आते हैं. इस त्यौहार में प्रत्येक घर के आँगन में फूलों की पंखुड़ियों से सुन्दर सुन्दर रंगोलियाँ बनाई जाती हैं, जिसे पुकलम कहा जाता है। महिलाएं उन रंगोलियों के चारों ओर वृत्त बनाकर उल्लास पूर्वक नृत्य करती हैं। प्रथम दिन इस पुकलम का आकार छोटा होता है लेकिन हर दिन इसमें फूलों एक वृत्त बढ़ा दिया जाता है, जिससे दसवें दिन यह पूक्कलम काफी बड़े आकार का हो जाता है। इस पुकलम के बीच त्रिक्काकरप्पन अर्थात भगवान विष्णु के वामन अवतार, राजा बलि तथा उनके अंग-रक्षकों की प्रतिष्ठा होती है जो कच्ची मिटटी से बनायीं जाती है।

 

पौराणिक कहानियों के अनुसार, ओणम केरल में दैत्य राजा महाबली के सुशासन की याद में मनाया जाता है, जिन्होंने कभी केरल पर शासन किया था। वह अपने सुशासन और दान के लिए जाने जाते थे. महाबली को अपनी प्रजा बहुत प्रिय थी और उन्होंने अपनी प्रजा के लिए काफी अच्छे काम किये थे, जिसकी वजह से वह अपनी प्रजा में काफी लोकप्रिय थे। महाबली ने अपनी साधना से कई तरह की शक्तियां प्राप्त की थी, जिससे उनका यश दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा था।

 

ऐसा कहा जाता हैं की महाबली इतने शक्तिशाली हो चुके थे की कोई देवता भी उन्हें नहीं हरा सकते थे. जिससे स्वर्ग के राजा इंद्र काफी विचलित थे. इंद्र की स्थिति को देखते हुए उनकी माता अदिति ने अपने पुत्र की रक्षा के लिए भगवान विष्णु की आराधना शुरू कर दी. आराधना से प्रकट होकर भगवान विष्णु ने अदिति से वादा किया की वह इंद्र की रक्षा करेंगे. तत्पश्चात भगवान विष्णु ने माता अदिति के गर्भ से वामन के रूप में जन्म लिया।

 

दैत्य राजा महाबली स्वर्ग पर स्थायी अधिकार प्राप्त करना चाहते थे और इसके लिए वह अश्वमेध यज्ञ करा रहे थे. इसी दौरान श्रीहरि विष्णु अपने वामन रूप में वहां पहुच गए. राजा महाबली ने भगवान् वामन का सत्कार किया और उनसे कहा की वह जो भी दान मांगना चाहे वह मांग सकते हैं. भगवान ने महाबली से तीन पग भूमि मांगी, जिसे महाबली ने स्वीकार करते हुए दान का संकल्प ले लिया. लेकिन भगवान वामन ने एक कदम से पूरी पृथ्वी और दूसरे कदम से पूरा आसमान नाप दिया, और फिर तीसरा कदम रखने की लिए जगह ही नहीं बची. अतः अपना वचन पूरा करने के उद्देश्य से महाबली ने तीसरा कदम रखने के लिये भगवान के सामने अपना सिर आगे कर दिया. और भगवान वामन ने जैसे ही महाबली के सिर पर अपना कदम रखा तो भगवान के अनंत शक्तियों के कारण महाबली पाताल में चले गए।

 

इधर जब प्रजा को महाबली के पाताल में जाने की सूचना मिली तो पूरे राज्य में हाहाकार मच गया. महाबली के जाने से प्रजा बेहद ही दुःखी गई. लेकिन महाबलि की उदारता, दानवीरता, समर्पण और उनके प्रति प्रजा के अनन्त स्नेह को देखते हुए भगवान ने महाबली को यह वरदान दिया की वह वर्ष में एक बार अपनी प्रजा से मिलने आ सकेंगे. उसी दिवस के उपलक्ष्य में ओणम का त्यौहार मनाया जाता है।

 

ओणम का त्यौहार दस दिनों तक मनाया जाता है जिसके हर दिन का एक खास महत्व है. इस दौरान 10 दिनों तक लोग अपने घरों को फूलों से सजा कर रखते हैं और विधि विधान से भगवान विष्णु और महाबली की पूजा करते हैं.

ओणम (Onam) के पहले दिन जिसे अथम कहा जाता है, लोग सुबह के समय स्नान करने के बाद मंदिर जाकर भगवान की पूजा करते हैं और फिर नाश्ते में केला पापड़ आदि खाते हैं और पुष्पकालीन अर्थात पुकलम बनाते हैं. दूसरा दिन अर्थात चिथिरा के दिन महिलाएं पुकलम में नए फूलों का वृत्त बनाती हैं. तीसरा दिन अर्थात विसाकम के दिन ओणम के दसवें दिन के लिए खरीददारी की जाती है. चौथे दिन अर्थात विशाखम फूलों का कालीन अर्थात पुकलम बनाने की प्रतियोगिताएं होती है और दसवें दिन के लिए अचार और आलू चिप्स जैसी चीजें तैयार की जाती हैं. पांचवां दिन अर्थात अनिजाम के दिन नौका दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. इस नौका दोड़ को केरला में वल्लमकली के नाम से जाना जाता है. छठा दिन अर्थात थिक्रेता के दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. सातवां दिन अर्थात मूलम के दिन बाजार सज जाते हैं और लोग खास पकवान और व्यंजनों का लुत्फ उठाते हैं. आठवां दिन अर्थात पूरादम के दिन लोग मिट्टी से पिरामिड के आकार की मूर्तियां बनाते हैं. नौवां दिन अर्थात उथिरादम के दिन को प्रथम ओणम कहा जाता है, और इस दिन लोग राजा महाबलि के आने का इंतजार करते हैं.

 

दसवां दिन अर्थात थिरुवोणम, ओणम का आखिरी दिन होता है, जो सबसे खास होता है. थिरुवोणम का सबसे खास आकर्षण है ओणम साध्या, जिसमें केले के पत्ते पर भोजन परोसा जाता है, इसमें कई तरह के शाकाहारी व्यंजन होते हैं। जिसमें सांभर, अवियल, कालान, ओलन, थोरन, इंची करी, पचड़ी, मिठाई और अलग-अलग प्रकार के पायसम प्रमुख रहते हैं। इसके अलावा इस दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है। जिसमें वल्लमकली अर्थात नौका दौड़, थिरुवाथिरा नृत्य, पुलिकली नृत्य, और पारंपरिक खेल ओणकलिकल खेले जाते हैं।

 

इस दिन की मान्यता है कि राजा राजा महाबली धरती पर आते हैं, अपनी प्रजा की खुशहाली देखकर प्रसन्न होते हैं और सभी को आशीर्वाद देते हैं। इसलिए थिरुवोणम को ओणम का सबसे प्रमुख पवित्र और हर्षोल्लास से भरा दिन माना जाता है। ऐसी मान्यता हैं की जब महाबली प्रजा से मिलने आते हैं तब पूरे राज्य में हरियाली छा जाती हैं और प्रजा को सम्रद्धि प्राप्त होती है। अगर देखा जाए तो संस्कृति, इतिहास, पौराणिकता, धर्म, सुशासन, खुशहाली और समृधि को एक साथ समेटे हुए ओणम एक सम्पूर्णता से भरा हुआ त्योहार है जो सभी के घरों को खुशहाली से भर देता है।

Tags: bhagwan vamanindian festivalkeralaking mahabalionampauranik katha
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