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Home शिक्षा

भारत में छठी शताब्दी में हुए भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत

by Ganga Info Desk
21 February 2020
in शिक्षा

तस्वीर सौजन्य : जागरण

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छठी शताब्दी में भक्ति आंदोलन का शुरुआत तमिल क्षेत्र से हुई जो कर्नाटक और महाराष्ट्र में फ़ैल गई! भक्ति आंदोलन का विकास बारह अलवार वैष्णव संतों और तिरसठ शैव संतों ने किया! भक्ति कवि संतों के दो समूह थे! प्रथम समूह वैष्णव संत थे जो महाराष्ट्र में लोकप्रिय हुए, वे भगवान विठोवा के भक्त थे! विठोवा पंथ के संत और उनके अनुयायी वरकरी या तीर्थयात्री पंथ कहलाते थे, क्योंकि हर वर्ष पंढरपुर की तीर्थयात्रा पर जाते थे! दूसरा समूह पंजाब एवं राजस्थान के हिंदी भाषी क्षेत्रों में सक्रिय था और इसकी निर्गुण भक्ति में आस्था थी!

 

भक्ति आंदोलन को दक्षिण भारत से उत्तर भारत में रामानंद स्वामी के द्वारा लाया गया! बंगाल में कृष्ण भक्ति की प्रारंभिक प्रतिपादकों में विद्यापति ठाकुर और चंडीदास थे! रामानंद स्वामी की शिक्षा से दो सम्प्रदायों के प्रादुर्भाव हुआ, सगुण जो पुनर्जन्म में विश्वास रखता है और निर्गुण जो भगवान के निराकार रूप को पूजता है! सगुण संप्रदाय के सबसे प्रसिद्द संत में थे तुलसीदास, नाभादास, निम्बार्क, वल्लभाचार्य, चैतन्य, सूरदास और मीराबाई! निर्गुण संप्रदाय के सबसे प्रसिद्द प्रतिनिधि संत हुए थे कबीर!

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शंकराचार्य के अद्वैतदर्शन के विरोध में दक्षिण भारत के वैष्णव संतों द्वारा चार मतों की स्थापना की गई –

श्री संप्रदाय – रामानुजाचार्य – विशिष्टाद्वैतवाद

ब्रह्म संप्रदाय – माधवाचार्य – द्वैतवाद

रूद्र संप्रदाय – विष्णुस्वामी – शुद्धद्वैतवाद

सनकादि संप्रदाय – निम्बार्काचार्य – द्वैताद्वैतवाद

और पढ़ें : वैदिक सभ्यता, साहित्य, धर्म और दर्शन की जानकारी

 

भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत –

रामानुजाचार्य (11वीं शताब्दी) : इन्होंने राम को अपना आराध्य माना! इनका जन्म 1017 ई० में मद्रास के निकट पेरुम्बर नामक स्थान पर हुआ था! 1137 ई० में इनकी मृत्यु हो गयी! रामानुजाचार्य ने वेदांत की शिक्षा अपने गुरु कांचीपुरम के यादव प्रकाश से प्राप्त किया था!

 

रामानंद : रामानंद स्वामी का जन्म 1299 ई० में प्रयाग में हुआ था! इनकी शिक्षा प्रयाग तथा वाराणसी में हुई! इन्होंने अपना संप्रदाय सभी जातियों के लिए खोल दिया! रामानुज की भांति इन्होंने भी भक्ति को मोक्ष का एकमात्र साधन स्वीकार किया! इन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम एवं सीता की आराधना को समाज के सामने रखा! इनके प्रमुख शिष्य थे – रैदास (हरिजन), कबीर (जुलाहा), धन्ना (जाट), सेना (जाट), पीपा (राजदूत)!

 

कबीर : कबीर का जन्म 1440 ई० में वाराणसी में एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था, लोक लज्जा के भय से उसने नवजात शिशु को वाराणसी में लहरतारा के पास एक तालाब के किनारे छोड़ दिया! जुलाहा नीरू तथा उसकी पत्नी नीमा इस नवजात शिशु को अपने घर ले गए! इस बालक का नाम कबीर रखा गया! इन्होंने राम, रहीम, हजरत, अल्लाह आदि को एक ही ईश्वर के अनेक रूप माने! इन्होंने जाति प्रथा, धार्मिक कर्मकांड, बाह्य आडम्बर, मूर्तिपूजा, जप तप, अवतारवाद आदि का घोर विरोध करते हुए एकेश्वरवाद में आस्था व्यक्त किया एवं निराकार ब्रह्म की उपासना को महत्व दिया! निर्गुण भक्ति धारा से जुड़े कबीर ऐसे प्रथम भक्त थे, जिन्होंने संत होने के बावजूद पुर्णतः गृहस्थ जीवन का निर्वाह किया! इनके अनुयायी कबीरपंथी कहलाए! कबीर की वाणी का संग्रह बीजक (शिष्य धर्मदास द्वारा संकलित) नाम से प्रसिद्ध है! कबीरदास की मृत्यु 1510 ई० में मगहर में हुई! कबीर सिकंदर लोदी के समकालीन थे!

 

गुरु नानक : गुरु नानक देव का जन्म 1469 ई० अविभाजित पंजाब के तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था, जो अब ननकाना साहिब के नाम से विख्यात है! उनकी माता का नाम तृप्ता देवी तथा पिता का नाम कालूराम था! उनहोंने देश का पाँच बार चक्कर लगाया, जिसे उदासीस कहा जाता है! उन्होंने कीर्तनों के माध्यम से उपदेश दिए! अपने जीवन के अंतिम क्षणों में उन्होंने रावी नदी के किनारे करतारपुर में अपना डेहरा स्थापित किया! अपने जीवन काल में ही उन्होंने अध्यात्मिक आधार पर अपने पुत्रों की जगह, अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया! इनकी मृत्यु 1539 ई० में करतारपुर में हुई! नानक ने सिक्ख धर्म की स्थापना की! नानक सूफी संत बाबा फरीद से प्रभावित थे!

और पढ़ें : महावीर स्वामी, उनके उपदेश और जैन धर्म से सम्बंधित जानकारी

 

चैतन्य स्वामी : चैतन्य का जन्म 1486 ई० में नवदीप के मायापुर गाँव में हुआ था! इनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र एवं माता का नाम शची देवी था! पाठशाला में चैतन्य को निमाई पंडित कहा जाता था! इन्होंने गोसाई संघ की स्थापना की और साथ ही संकीर्तन प्रथा को जन्म दिया! इनके दार्शनिक सिद्धांत को अचिंत्य भेदाभेदवाद के नाम से जाना जाता है! संयासी बनने के बाद बंगाल छोड़कर पूरी चले गए, जहाँ उन्होंने दो दशक तक भगवान जगन्नाथ की उपासना की! इनकी मृत्यु 1533 ई० में हो गयी!

 

श्री मद्वल्लभाचार्य : श्री मद्वल्लभाचार्य का जन्म 1479 ई० में चम्पारण्य (वाराणसी) में हुआ था! इनके पिता का नाम लक्षमण भट्ट तथा माता का नाम यल्लमगरू था! इनका विवाह महालक्ष्मी के साथ हुआ! इन्होंने गंगा यमुना के समीप अरैल नामक स्थान पर अपना निवास स्थान बनाया! वल्लभाचार्य ने भक्ति साधना पर विशेष जोर दिया! इन्होंने भक्ति को मोक्ष का साधन बताया है! इनके भक्तिमार्ग को पुष्टिमार्ग कहते हैं! सूरदास वल्लभाचार्य के शिष्य थे!

 

गोस्वामी तुलसीदास : इनका जन्म उत्तरप्रदेश के बांदा जिले में राजापुर गाँव में 1532 ई० में हुआ था! इन्होने रामचरितमानस की रचना की! इनकी मृत्यु 1623 ई० में हुई थी!

 

धन्ना : धन्ना का जन्म 1415 ई० में एक जाट परिवार में हुआ था! राजपुताना से बनारस आकर ये रामानंद स्वामी के शिष्य बन गए! कहा जाता है की इन्होने भगवान की मूर्ति को हठात भोजन कराया था!

 

मीराबाई : मीराबाई का जन्म 1498 ई० में मेड़ता जिले के कुदुवी ग्राम में हुआ था! इनके पिता का नाम रत्न सिंह राठौर था! इनका विवाह 1516 ई० में राणा सांगा के बड़े पुत्र और युवराज भोजराज के साथ हुआ था! अपने पति के मृत्यु के उपरांत ये पूर्णतः धर्मपरायण जीवन व्यतीत करने लगी! इन्होने कृष्ण की उपासना प्रेमी एवं पति के रूप में की! इनकी भक्ति गीत मुख्यतः ब्रजभाषा और आंशिक रूप से राजस्थानी में लिखे गए हैं तथा इनकी कुछ कविताएँ राजस्थानी में भी है! इनकी मृत्यु 1546 ई० में हो गयी!

 

रैदास : ये जाति के चमार थे और बनारस के रहने वाले थे! ये रामानंद के बारह शिष्यों में एक थे! इनके पिता का नाम रघु तथा माता का नाम घुरबिनिया था! ये जूता बनाकर जीविकोपार्जन करते थे! इन्होने रयदासी संप्रदाय की स्थापना की!

 

दादू दयाल : ये कबीर के अनुयायी थे! इनका जन्म 1544 ई० में अहमदाबाद में हुआ था! इनका संबंध धुनिया जाति से था! सांभर में आकर इन्होने ब्रह्म संप्रदाय की स्थापना की! इन्होंने निपख नामक आंदोलन की शुरुआत की! इनकी मृत्यु 1603 ई० में हो गयी!

 

शंकरदेव : (1449 से 1569 ई०) इन्होंने भक्ति आंदोलन का प्रचार प्रसार असम में किया! ये चैतन्य स्वामी के समकालीन थे!

 

रामकृष्ण परमहंस : इनका जन्म 18 फ़रवरी 1836 को कामारपुकुर, बंगाल में हुआ था! ये एक महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। इन्होंने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। उन्हें बचपन से ही विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं अतः ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति का जीवन बिताया। इनके पप्रमुख शिष्य हुए हैं स्वामी विवेकानंद! 16 अगस्त 1886 को कोलकाता में इनकी मृत्यु हो गयी!

और पढ़ें : गौतम बुद्ध एवं बौद्ध धर्म से सम्बन्धी जानकारी

 

और भी कई प्रमुख संत हुए हैं भक्ति आंदोलन के लेकिन पोस्ट को अत्यधिक लंबा न करने के उद्देश्य से और अधिक विवरण अगले अंक में प्रकाशित किया जाएगा! उम्मीद है ये रोचक पोस्ट आपको जरुर पसंद आया होगा! पोस्ट को पढ़ें और शेयर करें (पढाएं) तथा अपने विचार, प्रतिक्रिया, शिकायत या सुझाव से नीचे दिए कमेंट बॉक्स के जरिए हमें अवश्य अवगत कराएं! आप हमसे हमसे  ट्विटर  और  फेसबुक  पर भी जुड़ सकते हैं!

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