जीसस, स्त्री-प्रेम से स्वयं को बचाते एक देवदूत

Image Courtesy : Celebrity News

जीसस जन्म से लेकर जीवन में घटित घटनाओं में कृष्ण के करीब महसूस होते हैं। कृष्ण की मनोहर छवि गायों के साथ, जीसस की मनोरम छवि लैम्ब्स के साथ। तीर लगने पर कृष्ण का शरीर छोड़ना और जीसस के सर पर काँटों का ताज।

 

दोनों के जीवन में माँ का अस्तित्व अह्म है। यानी जहाँ वर्जिन मेरी जीसस को जन्म देकर देवदूत की माँ का स्थान पा कर पूज्यनीय हैं, वहीं कृष्ण को अपने जीवनकाल में दो माओं का संरक्षण मिला और दोनों माओं ने मातृत्व के उत्कृष्ट भाव को प्रस्तुत किया। जहाँ कृष्ण अपनी माओं से शिशुभाव में पिटते हैं, रोते हैं, रूठते हैं, शिकायतें और ज़िद करते दिखते हैं, जीसस की यह बाल-सुलभ चेष्टा कहीं सुनने, पढ़ने को नहीं मिलती। जीसस अपनी माँ से अलग या दूर दिखते हैं।

 

किशोरावस्था में जहाँ कृष्ण राधा के साथ प्रेम में होते हैं जिसका चित्रण हर जगह मिलता है, जीसस किसी भी स्त्री के करीब नहीं है। जहाँ प्रेम, अनुराग, विरह मानव जीवन की सहज प्रक्रिया को मान शिव, राम, कृष्ण आदि देवता स्त्री को न केवल अपने समकक्ष मानते हैं बल्कि उन्हें पूजते भी दिखते हैं, जीसस के जीवन में कभी कोई स्त्री स्थान पाती नहीं दिखती है।

 

क्या यह भेदभाव सृष्टि के आरम्भ की प्रकिया से उपजा कि रोशनी करने के बाद चाँद, तारों, आकाश, पृथ्वी बना लेने के बाद गॉड आदम की रचना करते हैं, यानी आदम का होना प्रथम भाव है और आदम के अकेलापन और उनके साथ के लिए ईव को गॉड ने बनाया। यह ईव ही थीं जिनकी ग़लती की वज़ह से उनसे स्वर्ग छूट गया और उन्हें धरती पर आना पड़ा।

 

क्या यही कारण रहा होगा कि जीसस कभी किसी स्त्री के साथ प्रेम-संबंध में नहीं रहे। प्रेम और सद्भावना का प्रतिरूप यह देवदूत स्त्री-प्रेम से दूर क्यों रहा, या स्वयं को उससे दूर क्यों रखा? मेरी के साथ जीसस का बाल्यावस्था में न होना, दिखना, दिखाना या पढ़ा जाना भी या इसी कारण से हुआ? यह ज़ोर देकर कहा, लिखा और बताया गया कि मेरी वर्जिन थीं यानी स्त्री से प्राप्त शारीरिक सुख को पाप समझा जाता रहा।

 

गॉड ईव की रचना एडम की रिब से करते हैं और उसे एडम को सौप देते हैं। देवी दुर्गा की रचना भी विभिन्न पुरुष शक्तियों से होती हैं, सूर्य, चंद्र, शिव, इंद्र, पवन, विष्णु सभी अपनी शक्तियों को सम्मिलित कर दुर्गा की रचना करते हैं और उनके अस्तित्व में आते ही उनकी आराधना करते हैं। दुर्गा की रचना सृष्टि और पुरुष की रक्षा हेतु होती है, उनके साथ सभी देवता भय-मिश्रित श्रद्धा-भाव रखते हैं। यह स्त्री की रचना में दिखने वाला अंतर दोनों समाजों में स्त्री के स्थान को स्पष्ट दिखा जाता है। स्त्री के होने को पाप या कमतर मानने की वज़ह शायद वह बड़ी वज़ह है जिसके कारण जीसस स्त्रियों से दूर दिखते हैं।

Exit mobile version