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Home History

रहस्यों से भरा है ये 772 साल पुराना मंदिर, श्रीकृष्ण से जुड़े है इसके तार!

by Pooja Suryawanshi
3 April 2025
in History, Odisha, जानकारी, ट्रेवल, धर्म, विडियो
TwitterFacebookWhatsappTelegram

भारत देश कई रहस्यों से भरा हुआ है। यहां की ख़ूबसूरती लोगों को लुभा सकती है तो ऐसी कई जगहें है जिनका रहस्य लोगों को चौंका भी सकते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे मंदिर के बारे में जो अपने आप में एक रहस्यमय मंदिर है। ये 772 साल पुराना मंदिर है और इसका एक अलग ही महत्व है। तो चलिए जानते हैं इस मंदिर की खासियत और इससे जुड़े कुछ रहस्य.

 

हम बात कर रहे हैं ओडिशा में स्थित प्रसिद्ध ‘कोणार्क सूर्य मंदिर’ (Konark Sun Temple) के बारे में जो 772 साल पुराना है। बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट से बना यह मंदिर अपने आप में काफी रहस्य भरा है जिसे देखने के लिए हर साल दुनिया भर से लाखों सैलानी आते हैं। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसका निर्माण इस तरह से किया गया है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है।

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यह मंदिर 1250 में बना था। ओडिशा के पुरी में स्थित यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। मंदिर का निर्माण 1250 ईस्वी में गांग वंश राजा नरसिंह देव प्रथम ने करवाया जिसकी चर्चा आज भी होती है। ऐसा कहा जाता है कि, मुस्लिम आक्रमणकारियों पर जीत के बाद राजा नरसिंहदेव ने कोणार्क में इस मंदिर का निर्माण कराया था। लेकिन इसी बीच 15वीं शताब्दी में इस मंदिर में आक्रमणकारियों ने लूटपाट मचा दी।

 

इस दौरान मूर्ति को बचाने के लिए पुजारियों ने उसे पुरी में ले जाकर रख दिया था। इस समय पूरा मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था और धीरे-धीरे पूरा मंदिर रेत से ढक गया था। इसके बाद 20वीं सदी में ब्रिटिश शासन में रेस्टोरेशन का काम प्रारंभ हुआ और उसी दौरान सूर्य मंदिर की खोज की गई। कहते हैं इस मंदिर को बनवाने में करीब 12 साल से भी ज्यादा का समय लगा था। जी हां… दिन-रात की मेहनत कर मजदूरों ने 12 साल में इसे एक अद्भुत मंदिर के रूप में तैयार किया।

 

इस मंदिर को पूर्व दिशा की ओर ध्यान में रखकर बनाया गया है। यही वजह है कि सूरज की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है। इसकी सबसे खास विशेषता यह है कि यह कलिंग शैली से निर्मित है और इसकी संरचना रथ के आकार की है। इस रथ में आप 12 जोड़ी पहिए देख सकते हैं। एक पहिए का व्यास करीब 3 मीटर है। इन पहियों को ‘धूप घड़ी भी कहते हैं क्योंकि ये अपने आप विशेष पहिए हैं जो वक्त बताने का काम भी करते हैं।

 

इसके अलावा रथ में 7 घोड़े हैं जिनको सप्ताह के सात दिनों का प्रतीक भी माना जाता है। वहीं 12 जोड़ी पहिए दिन के 24 घंटों को बताते हैं। यह भी माना जाता है कि 12 पहिए साल के 12 महीनों के प्रतीक हैं। इस रथ आकार के मंदिर में 8 ताड़ियां भी हैं जो दिन के 8 प्रहर को दर्शाते हैं। मंदिर की विशेषता यही खत्म नहीं होती है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो ऐसी मूर्तियां हैं जिसमें सिंह के नीचे हाथी और हाथी के नीचे मानव शरीर है। मान्यता है कि मंदिर के करीब 2 किलोमीटर उत्तर में चंद्रभागा नदी बहती थी जो अब विलुप्त हो गई है।

 

वही बात की जाए मंदिर के निर्माण के बारे में तो इसमें करीब 1200 कुशल शिल्पियों ने 12 साल काम किया लेकिन जब मंदिर का निर्माण पूरा नहीं हो पाया तो मुख्य शिल्पकार दिसुमुहराना के बेटे धर्मपदा ने इसी चंद्रभागा नदी में कूद कर अपनी जान दे दी।

 

इस मंदिर का निर्माण काफी बारीकियों के साथ किया गया है। कोणार्क दो शब्दों से मिलकर बना है जो ‘कोण’ और ‘अर्क’ है। अर्क का अर्थ सूर्यदेव से है। दोस्तों यह मंदिर जगन्नाथ पुरी से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जिसे साल 1984 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल में भी शामिल कर लिया है।

 

इसकी अपनी एक पौराणिक मान्यता भी है। कहा जाता है कि श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप मिलने के कारण कोढ़ रोग हो गया था जिसे निजात पाने के लिए साम्ब ने मित्र वन में चंद्रभंगा नदी के संगम पर कोणार्क में 12 साल तक तपस्या की थी। इसके बाद सूर्य देव ने उन्हें इस रोग से मुक्त कर दिया था। कहा जाता है कि इसके बाद इसी जगह पर सूर्य देव मंदिर के स्थापना कर दी गई। वही चंद्रभागा नदी में स्नान के दौरान उन्हें सूर्य देव के प्रतिमा मिली थी जिसे विश्वकर्मा ने तैयार किया था और इसी मूर्ति को कोणार्क मंदिर में स्थापित कर दिया। Konark Sun Temple | Konark Surya Madir

Tags: Incredible IndiaKonarkKonark Sun TempleKonark Surya MandirodishaSun TempleSurya MandirTourism
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