क्या मेड इन चाइना (Made in China) का प्रमोशन और मेक इन इंडिया (Make in India) के खिलाफ प्रोपगंडा कर रहे हैं राहुल गाँधी (Rahul Gandhi)? सवाल उठाया है भाजपा प्रवक्ता राधिका खेड़ा ने. दरअसल कांग्रेस नेता राहुल गाँधी पिछले कुछ समय से ड्रोन, मोबाइल और टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स के मैन्युफैक्चरिंग से जुडी जानकारियों पर विडियो बना रहे हैं.
इन विडियो पर सोशल मीडिया में बहस छिड़ गई है की इस विडियो के जरिए मेड इन चाइना की प्रशंसा और प्रमोशन किया जा रहा है, जबकि मेक इन इंडिया को एक फेल प्रोजेक्ट बताने की कोशिश की जा रही है. इन विडियो में यह भी बताने की कोशिश की गई है की चाइना जब चाहे तब भारत की अर्थव्यवस्था का गल घोंट सकता है. अर्थात दबे छुपे शब्दों में ये धमकी देने की कोशिश की गई है की भारत को चाइना से मुकाबला नहीं करना चाहिए. सोशल मीडिया में कई लोग तो इसे राहुल गाँधी की कांग्रेस और जिनपिंग की कम्युनिस्ट पार्टी के बिच हुए समझौते का हिस्सा भी बता रहे हैं.
अगर सोशल मीडिया में चल रहे अटकलों को अलग रखकर कर इन विडियो का विश्लेषण करें तो ये संभव की ये विडियो राहुल गाँधी का एक इमानदार प्रयास हो भारत के मेक इन इंडिया की कमियों को समझने और सामने लाने के, ताकि भविष्य में हम इन कमियों को दूर कर मेड इन चाइना से मुकाबला कर पाएं.
लेकिन जिस तरह से विडियो बनाया गया है, जिस जगह विडियो बनाया गया है, जिन बातों और आंकड़ों के इर्दगिर्द विडियो बनाया गया है, वो इस विडियो के ईमानदार मंशा पर सवाल खड़े कर देता है.
सबसे पहले राहुल ने ड्रोन इंडस्ट्री के ऊपर विडियो बनाए थे, जिसमें उन्होंने ये बताया की चाइना के सुपर ड्रोन के सामने भारत का ड्रोन खिलौने जैसा है. जबकि हकीकत ये है की आज भारत में न सिर्फ सरकारी क्षेत्र की कम्पनियाँ बल्कि प्राइवेट क्षेत्र की कम्पनियाँ भी बेहद उन्नत किस्म के ड्रोन का मैन्युफैक्चरिंग कर रही है. यहाँ तक की ऑपरेशन सिन्दूर में भारत में ही बने ड्रोन ने अपना जबरदस्त कमाल दिखाया है, और भारत में बने ये ड्रोन अब इजराइल तक में इस्तेमाल किए जा रहे है. फिर किस इरादे से भारत के ड्रोन इंडस्ट्री को खिलौने के स्तर का बेहद कमजोर बताया गया. हो सकता है भारत की ड्रोन इंडस्ट्री में अभी सुधर की बहुत गुंजाईश हो, लेकिन क्या भारत की ड्रोन इंडस्ट्री चीन के सामने एकदम खिलौने के बराबर है?
अब बात करते राहुल गाँधी के दुसरे विडियो की जिसमें उन्होंने मेड इन इंडिया मोबाइल पर सवल उठाया है. अपने विडियो में राहुल दिल्ली के नेहरु पैलेस के एक मोबाइल शॉप पर जाते हैं, जहाँ वो एक सैफ नाम व्यक्ति से सवाल जवाब करते दीखते हैं. इस सावला जवाब के दौरान ये दिखाने का प्रयास किया जाता है की मेक इन इंडिया के नाम पर भारत में सिर्फ फ़ोन की असेंबली होती है, जबकि सभी पार्ट मेड इन चाइना है. हालाँकि राहुल गाँधी के इस बात में काफी हद तक सच्चाई है की भारत में ज्यादातर पार्ट नहीं बनता है. अधिकतर पार्ट चाइना से आता है, और यहाँ सिर्फ असेम्बल कर के उसे पूरी दुनियां के मार्किट में बेचा जाता है. लेकिन यह इस पुरे इंडस्ट्री का सिर्फ एक पहलु है, दूसरा पहलू ये है की एक दशक पहले तक भारत में असेम्बल करने तक का काम भी नहीं होता था, पूरा का पूरा फ़ोन ही चाइना से आता था. जबकि आज, सिर्फ इनके कुछ पार्ट्स आते हैं, और अधिकतर पार्ट का निर्माण भी भारत में ही हो, इसका भी प्रयास किया ज रहा है, जिसमे सबसे महत्र्वपूर्ण चिप की मैन्युफैक्चरिंग तक शामिल है.
और ये सिर्फ भारत तक ही सिमित नहीं है, अमेरिका सहित दुनियां के अधिकतर देशों की बड़ी बड़ी मोबाइल कम्पनियाँ अपने हैंडसेट के पार्ट्स चाइना में ही बनवाते हैं, जिसमें एप्पल जैसे ब्रांड भी शामिल हैं. इसके पीछे की वजह है, चाइना का मास प्रोडक्शन कैपेसिटी, जो उसने पिछले तीन चार दशक में बनाई है, जिससे प्रोडक्शन का कास्ट बेहद कम हो जाता है, जो दुनियां भर के कंपनियों को आकर्षित करता है.
अगर तीसरे विडियो की बात की जाए जिसमें राहुल टीवी के भारत में सिर्फ अस्सेम्ब्लिंग पर सवाल उठा रहे हैं. टीवी हो, मोबाइल हो या इलेक्ट्रॉनिक्स का अन्य सामान, दुनियां भर के देशों की कम्पनियाँ अपने पार्ट्स का निर्माण चाइना में करवाते हैं. हालाँकि अब अस्सेम्ब्लिंग के आलावा इन पार्ट्स के स्वदेशी निर्माण का प्रयास भी हो रहा है.
टीवी वाले विडियो को देखकर राहुल गाँधी के प्रयास पर जो गंभीर सवाल उठाया जा रहे हैं वो ये है की क्या पिछले दस ग्यारह साल में ही ये सब सामन चाइना में बनने लगा और चाइना से भारत में आने लगा? क्या इसके पहले ये सब सामान भारत में ही निर्माण होते थे? करीब सात दशक तक देश में कांग्रेस पार्टी की सरकार रही तब इसके निर्माण का प्रयास या मैन्युफैक्चरिंग की फैसिलिटी के विकास का प्रयास क्यों नहीं हुए? पार्ट्स के मैन्युफैक्चरिंग की फैसिलिटी को छोड़ भी दें तो अस्सेम्ब्लिंग की फैसिलिटी के विकास का भी प्रयास क्यों नहीं हुआ? जिस दशक हमारी सरकारें भ्रष्टाचार में व्यस्त थी तब चाइना अपने यहाँ मैन्युफैक्चरिंग की फैसिलिटी बनाने और बढ़ने में लगा था. अस्सेम्ब्लिंग ही सही आज दुनियां के पचास से ज्यादा देशों में भारत के बने फ़ोन बिक रहे हैं. अब जब भारत में मेक इन इंडिया के तहत अस्सेम्ब्लिंग की फैसिलिटी बन गयी है, और पार्ट्स के निर्माण का भी एक इमानदार प्रयास चल रहा है तो फिर इस तरह के विडियो को एक इमानदार प्रयास मानाने के बजाय सिर्फ पोलिटिकल स्टंट क्यों न माने?
सोशल मीडिया में इन सवालों के अतिरिक्त भाजपा प्रवक्ता राधिका खेड़ा ने भी इस विडियो की मंशा पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा, राहुल Make In India के खिलाफ प्रोपगंडा के लिए कांग्रेस नेता डॉली शरमा के भाई मनीष भरद्वाज के फैक्ट्री में जाते हैं. Rahul Gandhi देश को बदनाम, चीन का नाम और कांग्रेस का काम कर रहे हैं! ये फ़ैक्ट्री विज़िट नहीं, चीनी प्रायोजित प्रोपेगेंडा का लाइव शूट था!
अब राहुल गाँधी का मेक इन इंडिया Vs मेड इन चाइना पर लगातार विडियो बनाना उनके एक इमानदार प्रयास है, मेक इन इंडिया की कमियों को समझकर चाइना से मुकाबला करने के लिए, या फिर मेड इन चाइना का प्रमोशन और मेक इन इंडिया के खिलाफ दुष्प्रचार हा, ये आपके विवेक पर छोड़ रहे हैं.